तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

मेरे दोस्त

दोस्त तो ऐसे ही होते हैं...
जो कभी हंसाते हैं, कभी रुलाते हैं...
पहली बार मिलते हैं, और मुस्कुराते हैं
फिर कुछ ही पल में एक हो जाते हैं।
साथ रहते हैं, पीते हैं, खाते हैं
जरा सी बात पर घंटो कह्कहाते हैं।
कभी रूठ जातें हैं,
छोटी-छोटी बातों पर,
और कभी एकदूसरे को थोड़ा-थोड़ा सताते हैं।
खुशियाँ बांटते हैं
आपस में सारी,
हो अगर गम तो,
उसे छुपाते हैं।
हाँ दोस्त तो ऐसे ही होते हैं...
कभी हंसाते है, कभी रुलाते हैं...
बुरे वक्त में बनते हैं,
एकदूसरे का सहारा
हर हाल में साथ निभाते हैं।
हाँ दोस्त तो ऐसे ही होते हैं...
कभी रुलाते हैं, कभी हंसाते हैं...
एक की ऑंखें छलक जाएं तो
सारे ही आंसू बहाते हैं...
फिर एकदूसरे को पागल कहकर
गम में भी सब मुस्कुराते हैं...
हाँ दोस्त तो ऐसे ही होते हैं...
कभी हंसाते हैं, कभी रुलाते हैं...

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

1 Response
  1. बहुत सुन्दर प्यारी रचना लिखी मीत आपने। पर जरा पता बताना जहाँ ऐसे दोस्त मिलते है।


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