वो रहस्यमयी मुस्कानें, वो भेद भरी नज़रें
वो रह रह के उनका हँसना, वो चोटी में रिबन कसना...
वो मुड़-मुड़ के देख मुझको, नज़रों से नज़र मिलाना
मौसम पतझड़ का भी बसंत लग रहा है...
मुझे नींद नहीं आती, बेचैन हो गया हूँ
आंखें बंद करने की हिम्मत नहीं है मुझमें
ऑंखें बंद करके जो तस्वीर है मन में आती
उसमें वो हसीना दिखती है मुस्कुराती
ऐ खुदा ये मुहब्बत तो नहीं ?
या किसी के आकर्षण का बन्धन तो नहीं?
जो मुझसे मेरी नींदें चुराना चाहती है
मेरा दोस्त बनकर मुझको अपनाना चाहती है...
: नवीन
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