तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...

कभी तुमने!
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
सीने में दर्द छिपाए,
जब भूख से पेट कुलबुलाये,
निहार शून्य, होंठो को भीच,
एक लम्हा भी जिया है....
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
अनजान मंजिलों की,
बेदर्द महफिलों में,
लिबास के पैबंद को
कभी हाथों से ढका है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
राहों में दौलतों की,
क्या तुम कभी चले हो,
सोने के खंजरों को,
कभी जिस्म पे सहा है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
कोई खाए कहीं झूठन,
कोई पहने कहीं उतरन,
खरीदने को खुशियाँ,
यहाँ जिस्म भी बिका है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
कहीं छत नहीं है सर पे,
कहीं तन उघड़ रहा है,
क्या देख कर इस सब को,
तुम्हारा दिल जला है...
कभी तुमने!
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
________________________________
बस यूँ ही ख्याल दिल को दर्द देते रहते हैं...
और दर्द शब्दों में बह जाता है...
फ़िर दर्द हुआ और बह गया...
बस आपकी नज़र कर दिया ...

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

आतंक की कहानी, आतंकी की ज़बानी...

उम्र: 21 साल, रोजगार- मजदूरी,आवास- फरिदकोट, तहसील- दिपालपुर, जिला-उकदा, राज्य-पंजाब. पाकिसतान
मैंने अपने जन्म से उपर्युक्त स्थान पर रहता आया हूं। मैंने चौथी कक्षा तक गर्वमेंट प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई की. वर्ष 2000 में स्कूल छोड़ने के बाद लाहौर चला गया. मेरा भाई अफजल लाहौर के गली नंबर 54, मकान संख्या 12, मोहल्ला तोहित अबाद, यादगार मिनार के पास रहता है। मैं 2005 तक कई जगहों पर मजदूरी की। इस दौरान में अपने पुश्तैनी मकान भी जाता रहा. वर्ष 2005 में मेरा, मेरे पिता के साथ झगड़ा हो गया. इसलिए, मैं घर छोड़कर लाहौर के अली हजवेरी दरबार चला गया. मुझे बताया गया था कि यह, वह स्थान है, जहां घर से भागे लड़कों को पनाह मिलती है और यहां से लड़कों को दूसरे स्थानों पर रोजगार के लिए भेजा जाता है. एक दिन जब मैं वहां था, एक शफीक नाम का लड़का आया और वह मुझे अपने साथ ले गया. वह कैटरिंग का व्यवसाय करता था. शफीक झेलम का रहने वाला था. मैं उसके साथ दिहाड़ी पर काम करने लगा. मुझे रोज के 120 रुपये मिला करते थे. कुछ दिनों बाद मेरी दिहाड़ी 200 रुपये हो गई. मैंने शफीक के साथ 2007 तक काम किया. शफीक के साथ काम करते हुये ही मैं मुजफर लाल खान (उम्र-22 वर्ष, आवास/गांव- रोमिया, तहसील और जिला-अटक, राज्य-सरहद, पाकिस्तान) के संपर्क में आया. हमने लूटपाट/डकैती करने का मन बनाया, क्योंकि हम अपनी आमदनी से संतुष्ट नहीं थे. ऐसा सोच कर हमने नौकरी छोड़ दी. इसके बाद हम रावलपिंडी चले गये. वहां हमने बंगश कॉलोनी में एक फ्लैट किराये पर लिया और रहना शुरू कर दिए. अफजल ने डाका डालने के लिए एक घर को चुन लिया, जहां उसे ज्यादा माल मिलने की उम्मीद थी. उसने डाका डालने से पहले उस घर के बारे में अच्छी तरह से जानकारी ले ली और नक्शा भी बना लिया. इसके लिए हमें बंदूकों की आवश्यकता थी. अफजल ने मुझसे कहा कि वह बंदूक की व्यवस्था अपने गांव से कर सकता है, लेकिन इसमें बहुत खतरा है, क्योंकि वहां हमेशा चेकिंग होती रहती है.पहली मुलाकातबकरीद के दिन रावलपिंडी में जब हम हथियार ढूंढ रहे थे, राजा बाजार में हमें कुछ लश्कर-ए-तोयबा के स्टॉल दिखे. हमने सोचा कि आज हम हथियार पा भी लें तो उसे चला नहीं पाएंगें. इसलिए हथियार प्रशिक्षण के लिए लश्कर-ए-तोयबा में शामिल होने का निर्णय लिया. पूछताछ कर हम लश्कर के ऑफिस में पहुंच गए. वहां मौजूद एक व्यक्ति से हमने शामिल होने की मंशा जाहिर की. उसने हमसे कुछ पूछताछ की, हमारा नाम और पता दर्ज किया और अगले दिन से आने को कहा.अगले दिन हम लश्कर के ऑफिस पहुंचे और उसी व्यक्ति से मिले. उसके साथ एक और व्यक्ति वहां मौजूद था, उसने हमें 200 रुपये और कुछ कागजात दिये. उसके बाद उसने हमें एक स्थान मरकस तय्यबा, मुरिदके का पता दिया और वहां जाने को कहा. उसी स्थान पर लश्कर का ट्रेनिंग कैंप था. वहां हम बस से गए और कैंप के गेट पर कागजात दिखाये और अंदर दाखिल होने के बाद हमसे दो फॉर्म भरवाए गए. तब हमें असली कैंप एरिया में दाखिल होने की अनुमति मिली.
ट्रेनिंग कैंप
उक्त स्थान पर शुरू में हमें 21 दिनों का ट्रेनिंग दी गयी, जिसका नाम था, दौरासूफा। अगले दिन से हमारी ट्रेनिंग शुरू हो गयी। हमारा रोज का प्रोग्राम कुछ इस प्रकार था.
4.15- जागना और फिर नमाज़
8.00- नाश्ता
8.30-10.00-मुती सईद द्वारा कुरान की पढ़ाई
10.00-12.00-आराम
12.00-1.00-भोजन
1.00-2.00-नमाज
2.00-4.00-आराम
4.00-6.00-पीटी और गेम टीचर-फादूला
6.00-8.00-नमाज और अन्य काम
8.00-9.00- भोजन
उपर की ट्रेनिंग पूरी कर लेने के बाद हमें दूसरे ट्रेनिंग केम्प दौराअमा के लिए चुना गया। यह भी 21 दिनों का ट्रेनिंग कैंप था. उसके बाद हमें एक स्थान, मंसेरा गांव ले जाया गया. वहां 21 दिनों तक हमें सभी हथियारों की ट्रेनिंग दी गयी. वहां रोज का हमारा प्रोग्राम कुछ ऐसा था.
४-15-5.00- जागना और फिर नमाज
5-00-6.00- पीटी इंसट्रक्टर- अबु अनस
८-0- नाश्ता
8-30-11.30-हथियार चलाने की ट्रेनिंग, अब्दुल रहमान के द्वारा एके 47, ग्रीन-एसकेएस, यूजी गन, पिस्टल, रिवॉल्वर.
११-30-12.00- आराम
12.00-1.00- भोजन
१-00-2.00- नमाज
2.00-4.00- आराम
4.00-6.00- पीटी
6.00-8.00- नमाज और अन्य काम
8।00-9.00- भोजन
सीएसटी के बाहर अजमल
ये ट्रेनिंग पूरी कर लेने के बाद हमसे दूसरी ट्रेनिंग करने की बात कही गयी, लेकिन उससे पहले दो महिने की खिदमत करने को कहा गया। हम उस दो महिने की खिदमत को तैयार हो गये.
अपने घर वापस
दो महिने बाद मुझे माता-पिता से मिलने की अनुमति दी गयी। एक महिने मैं अपने घर रहा. उसके बाद आगे की ट्रेनिंग के लिए मुजफराबाद के सांइवैनाला स्थित लश्कर के कैंप में गया. वहां मेरे दो फोटो लेकर फॉर्म भरा गया. उसके बाद हमें छेलाबंदी पहाड़ी में दौराखास का ट्रेनिंग दी गयी. यह ट्रेनिंग 3 महिने की थी. इसमें पीटी, हथियारों का रख-रखाव और उनका इस्तेमाल, हैंड ग्रेनेड, रॉकेट लांचर और मोर्टार की ट्रेनिंग दी. रोज का प्रोग्राम ऐसा था.
4.15-5.00- जागना और फिर नमाज
5.00-6.00- पीटी इंस्ट्रक्टर अबु माविया
8.00- नाश्ता
8।30-11.30- हैंड ग्रेनेड, रॉकेट लांचर, मोर्टार, ग्रीन, एसकेएस, यूजी गन, पिस्टल, रिवॉल्वर का प्रशिक्षण, अबू माविया के द्वारा.
11.30.-12.00 आराम
12.00-1.00 लंच ब्रेक
1.00-2.00 नमाज
2.00 - 4.00 हथियार चलाने की ट्रेनिंग और भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के बारे में जानकारी.
4.00-6.00 पीटी
6.00-8.00 नमाज और अन्य कार्य
8.00-9.00 भोजन
सोलह का चयन
ट्रेनिंग के लिए 32 लोग वहों मौजूद थे. इन 32 में से 16 लोग जकी-उर-रहमान उर्फ चाचा के द्वारा एक गुप्त ऑपरेशन के लिए चयन किये गये. इन 16 ट्रेनियों में 3 लड़के कैंप से भाग गये. बचे हुए 13 लड़कों को काफा नामक व्यक्ति के साथ फिर से मूरीदके कैंप भेज दिया गया। मूरीदके में हमें तैराकी की ट्रेनिंग दी गयी और मछुआरे समुद्र में कैसे काम करते हैं, इसकी ट्रेनिंग दी गयी. हमने समुद्र में कई प्रायोगिक यात्राएं की. इस दौरान भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के काम करने की जानकारी हमें दी जा रही थी. साथ ही हमें भारत में मुसलिमों के खिलाफ दमन की विडियो क्लिपिंग भी दिखाई जा रही थी. इस ट्रेनिंग के समाप्त होने पर हमें अपने घर जाने की अनुमति दी गयी. मैं सात दिनों तक अपने परिवार के साथ रहा. इसके बाद में लश्कर-ए-तोयबा के मुजफराबाद कैंप चला आया. हम वहां 13 लोग थे. फिर वहां से हमें काफा मुरीदके कैंप ले गया.
समुद्री अनुभव
जैसा कि मैंने पहले कैंप के बारे में बताया फिर से वहां तैराकी की ट्रेनिंग दी जाने लगी। यह ट्रेनिंग 32 दिनों तक चली. यहां हमें भारतीय खूफिया एजेंसी के बारे में भी बताया गया. यहां हमें इस बात की भी ट्रेनिंग मिली की कैसे सुरक्षाकर्मियों से बचकर भगा जाये. हमें इस बात की भी ताकीद की गयी कि भारत पहुंच कर कोई भी पाकिस्तान फोन न करे. ट्रेनिंग में मौजूद 16 सदस्यों का नाम इस प्रकार है.
मोहम्मद अजमल उर्फ अबु मुजाहिद,
इसमाइल उर्फ अबु उमर,
अबु अली,
अबु अख्शा,
अबु उमेर,
अबु शोएब,
अब्दुल रहमान (बड़ा),
अब्दुल रहमान (छोटा),
अदुल्ला,
अबु उमर
ट्रेनिंग समाप्त होने के बाद जकि-उर-रहमान उर्फ चाचा ने हम में से 10 लोगों का चयन किया और उसे दो-दो के हिस्सों में बांट दिया, जो कि पांच टीम बनी। वह 15 सितंबर का दिन था.
वीटीएस टीम
मेरी टीम में मेरे अलावा इस्माइल था। हमारा कोड वीटीएस टीम था. हमें इंटरनेट पर गूगल अर्थ के जरिये नक्शा दिखाया गया। इसी साइट के द्वारा हमें मुंबई के आजाद मैदान की जानकारी दी गयी. हमें वीटी रेलेवे स्टेशन का वीडियो दिखाया गया. जिसमें यात्रियों की भीडभाड दिखायी गयी. हमें यह आदेश दिया गया कि भीडभाड के समय सुबह के 7-11 या शाम के 7-11 बजे फायरिंग करनी है. इसके बाद कुछ लोगों को बंधक बनाना है और नजदीक की किसी बिल्डिंग की छत पर ले जाना है. छत पर पहुंच कर चाचा से कांटेक्ट करना है. इसके बाद चाचा इलेक्ट्रानिक मीडिया के संपर्क नंबर देते और हमें मीडिया के लोगों से संपर्क करना था. चाचा के आदेश के बाद हमें बंधकों की रिहाई के लिए मांगे रखनी था. यह हमारे ट्रेनरों के द्वारा सामान्य शिक्षा दी गयी थी. इसके लिए 27 सितंबर 2008 का दिन तय किया गया था, लेकिन इसके बाद किसी कारणवश यह ऑपरेशन टाल दिया गया. हम करांची में रुके और फिर से समुद्र में बोट चलाने की प्रेिक्टस की. हम वहां 23 नवंबर तक रुके वहां की टीमें इस प्रकार थीं.
दूसरी टीम: अबु अख्शा, अबु उमर
तीसरी टीम: बड़ा अब्दुल रहमान, अबु अली
चौथी टीम: छोटा अब्दुल रहमान, अदुल्ला
पांचवी टीम: शोएब, अबु उमेर
23 नवंबर को सभी टीम अजीजाबाद से चली. हमारे साथ जकि-उर-रहमान उर्फ चाचा और काफा भी थे. हम समुद्र तट के नजदीक पहुंचे. तब 4.15 हुए थे, वहÈ हमने लंच किया. 22-25 नॉटिकल्स माइल्स आगे बढ़ने के बाद हम एक बड़े से जहाज जिसका नाम अल-हुसैनी था, पर सवार हुये. जहाज पर सवार होते ही हम में से हरेक को 8 ग्रेनेड, एक-एक एके-47 राइफल, 200 गोलियों, दो मैगजीन और एक-एक सेल फोन दिया गया। इसके बाद हम भारत की सीमा की ओर चल पड़े.
मुंबई पहुंचने पर
तीन दिनों की यात्रा के बाद मुंबई के नजदीकी समुद्री इलाके में पहुंचे तट पर पहुंचने से पहले ही इसमाइल और अदुल्ला ने भारतीय जहाज के चालक की हत्या कर दी। इसके बाद हम डिंघी पर सवार होकर बुडवार पार्क के समीप पहुंचे. मैं इसमाइल के साथ टैक्सी से वीटी रेलवे स्टेशन पहुंचा, रेलवे स्टेशन पहुंचते ही हम टॉयलेट गये और वहीँ हमने अपने हथियारों को लोड किया और बाहर निकलते ही अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. अचानक से एक पुलिस ऑफिसर ने हम पर फायरिंग शुरू कर दी. जवाब में हमने उस पर ग्रेनेड फैंक दिया.इसके बाद हम फायरिंग करते हुये रेलवे स्टेशन के अंदर पहुंच गये. फिर हम स्टेशन से बाहर आ गये और एक बिल्डिंग तलाशने लगे, लेकिन हमें मनमाफिक बिल्डिंग नहीं मिल पायी. इसके बाद हम एक गली में घुस गये. वहां हम एक बिल्डिंग में चले गये. 3-4 मंजिल चढ़ने पर हमने पाया कि यह तो अस्पताल है. इसलिए हम फिर से नीचे उतरने लगे. इसी बीच एक पुलिकर्मी ने हमपर फायरिंग शुरू कर दी और हमने उस पर भी ग्रेनेड फेंक दिया. जैसे ही हम अस्पताल की चारदीवारी से बाहर निकले, तो हमें एक पुलिस की गाड़ी दिखायी दी। इसलिए हम एक झाड़ी के पीछे छिप गये.
शूट आउट ऑन रोड
एक गाड़ी हमारे आगे आकर रुकी. एक पुलिस ऑफिसर नीचे उतरकर हमपर फायरिंग करने लगा. मेरे हाथ में गोली लगी और मेरी राइफल नीचे गिर गयी. जैसे ही मैं नीचे झुका की एक दूसरी गोली फिर से मेरे उसी हाथ में लगी. मैं घायल हो गया. लेकिन इसमाइल उस अफसर पर फायरिंग करता रहा. वे लोग भी घायल हुए और फायरिंग बंद हो गयी. हमें उस गाड़ी तक पहुंचने में कुछ समय चाहिए था. उस गाड़ी में हमें तीन लाशें मिली, जिन्हें इसमाइल ने गाड़ी से नीचे फेंक दिया. फिर हम उस गाड़ी में सवार हो गये. कुछ पुलिस वालों ने हमें रोकने का प्रयास किया और इसमाइल ने उन पर भी फायरिंग की. कुछ आगे जाने पर एक बड़े से मैदान के समीप गाड़ी पंक्चर हो गयी. इसमाइल गाड़ी से नीचे उतरा और एक दूसरी कार, जिसे एक महिला चला रही थी को गन प्वाइंट पर रोक लिया. उसके बाद इसमाइल मुझे उस कार तक ले गया. क्योंकि मैं घायल था. वह खुद कार चलाने लगा. कुछ देर बाद समुद्र के किनारे हमारी गाड़ी रोक दी गयी. इसमाइल लोगों पर गोलियां बरसाने लगा. कुछ पुलिस वाले घायल हो गये और वो भी हमपर फायरिंग करने लगे. इसी दौरान इसमाइल भी घायल हो गया. इसके बाद पुलिस हमें किसी अस्पताल में ले गयी. अस्पताल में मुझे मालुम हुआ कि इसमाइल मर चुका है और मैं बच गया हूं.

(मेरा यह बयान हिंदी में पढ़कर मुझे समझा दिया गया है और यह पूरी तरह सही है। :मोहम्मद अजमल अमीर ईमान अलियास अबू मुजाहिद )

**यह मुंबई आतंकी घटना में पकड़े गए मात्र एक जिंदा आतंकी का बयाँ है जिसे लफ्ज़-ब-लफ्ज़ आपके सामने दिया है...

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

हमें अभी बहुत सी ज़ंग जीतनी हैं...

पूरे देश की निगाहें थी मुंबई में हो रही आतंकी घटना पर... कितने ही मारे जा चुके थे, कितने ही अस्पताल में मौत से लड़ रहे थे...कितने ही उन दहशतगर्दों से लोहा लेते हुए मौत के मुह में जा चुके थे... और कितने ही लड़ रहे थे... २९ नवम्बर २००८... सुबह ४ बजे ज़ंग लगभग अपनी चरम सीमा पर थी पिछले २ दिन से मैं लगातार टीवी से चिपका रहा था, और देश के जाबाजों को घात लगाये बैठे देख रहा था... कभी कभी छिटपुट गोलीबारी होती तो लगता अब शायद जीत मिलेगी...पर नहीं...
टीवी देखकर थक गया था, मोर्निंग वाल्क का टाइम भी हो चला था सो निकल पड़ा... मेरे घर से रोड क्रॉस करते ही, चांदनी चौक थाना है... जो की जनता के लिए नया बना है... मैं रोड क्रॉस कर उसके सामने पहुँचा ही था... की एक लगभग ५ फीट का हवालदार, मोटा पेट, बाल आधे सफ़ेद, आधे काले...
कुल मिलाकर बहुत ही भोंडा सा लग रहा था वो, मुहं में पान था और शरीर पर पेट के आलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था, ऐसे लगता था बस अभी फट पड़ेगा... ठण्ड भी कुछ ज्यादा ही थी... वो पुलिस वाला उसके रिक्शे से उतरा और सीधा थाने में जाने लगा...
उसे बिना पैसे दिए जाते देख रिक्शा वाला, जो की एक ६ फीट का हट्टा-कट्टा जवान था, शारीरिक बनावट से कोई फौजी की तरह लग रहा था... उससे बोला साब किराया तो देते जाइये...
पुलिसवाला थाने के गेट पर खड़े अपने दूसरे साथी से बोला की अबे इसे कुछ समझा ये हमसे पैसे मांगेगा... ये शब्द सुनते ही मेरा जैसे खून सा खोल गया... उस रिक्शे वाले को इतनी ठण्ड में भी माथे से पसीने की बुँदे पोंछते देख इस बात का अंदाजा हो रहा था की वो मोटा उसे काफी दूर से लेकर आया होगा... मैंने उस पुलिसवाले को आवाज देते हुए कहा माफ़ कीजियेगा! जब आप उसके रिक्शे में बैठ कर आए हैं तो फ़िर उसका किराया दिए बिना क्यों जा रहे हैं... वो पुलिसवाला बोला तुझे ज्यादा दर्द हो रहा है तो तू ही देदे इसका किराया...
मैं उसकी यह बात सुनकर उस पुलिसवाले से उलझना चाहता था, पर उस रिक्शे वाले ने मुझे रोका, और छोडिये ना साहब! खाने दीजिये इसे हराम की कह कर अपना रिक्शा लेकर हलके-हलके कोहरे में कहीं खो गया... वो दोनों पुलिसवाले जोर से हँसे और फ़िर अंदर चले गए... मैं लगभग ५ मिनट वहां रुका और मूड ख़राब हो जाने की वजह से वापस घर की की तरफ़ चल दिया...
घर पहुँचा तो पता चला की मुंबई की ज़ंग जीती जा चुकी थी... सारे आतंकवादी मारे जा चुके थे...मैंने शीशे में अपना चेहरा देखा, मेरे चेहरे पर संतोष नहीं था... मन में सोचा की उस संतोष को पाने के लिए हमें अभी बहुत सी ज़ंग जीतनी हैं...

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