तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

गाँव के पास अब हाट नहीं लगते..









गोबर से लिपे हुए आंगन नहीं दिखते..
गाँव के पास अब हाट नहीं लगते..
न कहीं, पेड़ों पे आम की बौर है.
न नदी के पानी का मध्यम सा शोर है.
वो चिमटा, वो फूकनी, वो चूल्हा कहाँ है?
अब तो बस पेट्रोल और डीजल का धुआं है.
डाली पे अब कहीं झूले नहीं टांगते..
गाँव के पास अब हाट नहीं लगते..
चौपाल पे हुक्कों की  गुड़गुड़ नहीं है.
अम्मा के हांथो की गर्मी नहीं है.
पाठशाला की घंटी की टन टन कहाँ है?
अब तो के-बोर्ड की टक-टक जवान है.
रामू और गीता अब तितली नहीं पकड़ते..
गाँव के पास अब हाट नहीं लगते..
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