तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

रिश्तों के आँगन में मन, बिखरा पड़ा है...

 रिश्तों के आँगन में मन, बिखरा पड़ा है... 

प्रेम की अलमारी में, कब से इसे बंद किया था,
हर नाते की चाप को, मुस्कुरा के सह लिया था,
संबंधों की गठरी से, टुकडा-टुकडा कर गिर पड़ा है,

रिश्तों के आँगन में मन, बिखरा पड़ा है...

तकिया से मन को, कभी सराहने पे दबा लेता,
बिछौना बना ज़िन्दगी के पलंग पे कभी बिछा लेता,
आज ये ख्वाहिशों की लाठी बन, मुझसे लड़ चला है,

रिश्तों के आँगन में मन, बिखरा पड़ा है...

हाँथ है की, मजबूरियों की जेब में पड़े हैं,
मन के टुकडों को, हम कुचल के चल पड़े हैं,
अंजान प्रेयसी सा, मुहं फेर के पड़ा है,

रिश्तों के आँगन में मन, बिखरा पड़ा है...

                                          ---मीत
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

झीनी-झीनी बारिश...

वो हर सुबह आते जाते लोगो को बारिश के लिए दुआ करते देख और सुन रहा था... हर तरफ लगभग एक ही जुमला सुनने को मिलता...हे भगवान तू कितना निर्दयी है?? क्या इस साल गर्मी से ही मार देगा... बात सही भी थी कितने ही दिन हुए थे, बारिश थी की आने का नाम ही नहीं ले रही थी. सावन निकलने को था लेकिन गर्मी से सुलग रही धरती पर बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरी थी... उसे ख़ुशी थी की बारिश नहीं हो रही है... अच्छा है होनी भी नहीं चाहिए... उसे बहुत डर था की अगर कहीं ये बारिश हो गई तो उसके लिए बहुत मुश्किल हो जायेगी...इसलिए खुदा से हरदम बारिश ना होने की दुआ मांग रहा  था...
      और फिर एक रोज उसने खबर सुनी की फसल मर जाने की वजह से एक किसान ने आत्म-हत्या कर ली... वो डर गया... हर तरफ से उसके कानों में केवल एक ही आवाज़ पढ़ रही थी... सूखा... सूखा... सूखा... आखिर वो लोगो के दुःख के आगे हार गया और उसने भी अपने हाथ दुआ में उठाये और दुआ मांग ही डाली... दुआ में उसने वही माँगा जो उसे ना पसंद था... पानी...
      कहते हैं खुदा देर से सुनता है पर ये क्या उसकी आवाज़ पल भर में खुदा तक जा पहुंची... और सारी फिजा पानी से नहा गयी... तीन दिन से पानी लगातार बरस रहा था... उसका डर बढ़ गया था, दिल की धड़कने किसी सुपरफास्ट ट्रेन की तरह भाग रही थी... वो जल्दी से अपने घर पहुंचना चाहता था... तीन दिन से वोअपने घर से दूर था...
आखिर वो वो घर पहुंचा... देखते ही माँ उस से बोली देख बेटा भगवान् ने हमारी नहीं सुनी ना.. आखिर बारिश कर ही दी...  एक तो ये एक टूटा फूटा कमरा उस पर से लगातार होती ये झीनी-झीनी बारिश, सुना है यह बारिश बहुत खतरनाक होती है... इस बारिश की वजह से बड़े-बड़े मकान ढह जाते हैं... बेटा तीन दिन से घर की छत से पानी टपक रहा है... मैं ही जानती हूँ की तीन दिन से सारे बच्चों को किस तरह संभाले हूँ... कहीं हमारी छत भी गिर गई तो... तू ही बता ने ये बारिश बंद क्यों नहीं होती... अगर इस साल ना बरसता तो क्या हो जाता...??
     माँ के इतने सारे सवालों के आगे वो खामोश था... उसने आपने परिवार को बाहों में भरा और एक कोने में सिमट गया...पर उसकी बाहें छोटी थी...उसने आसमान की तरफ देखा... और मुस्कुरा दिया...आखिर उसी ने तो दुआ में मांगी थी यह बारिश...
खुदा तो हर किसी की सुनता है, यह तो और बात है की,
कहीं ऑंखें बरसती हैं, तो कहीं,
घर टपकता है...

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