तुम्हारी आंखें!
कभी मेरे चेहरे के आस-पास
सरगोशियाँ करती हैं...
कभी आधी रात को ख्वाबों में
मेरी अंखियों से अठखेलियाँ करती हैं...
तुम्हारी आंखें!
गिरती है जब बारिश कभी मेरे तन पर
इन्हीं से निकली आंसुओं की बूंद सी लगती है...
सूख जाती है बारिश तो बरसने के बाद,
पर तुम्हारी आँखों में क्यों मुझे नमी सी लगती है...
तुम्हारी आंखें!
कुछ तो कहानी है इनमें,
जो मेरे कानो पे ये सुबकती हैं...
बोलती तो कुछ नहीं हैं पर,
एकटक मुझी को तकती हैं...
क्या करूँ में इनका, मेरी ज़िंदगी सालों से सोयी नहीं है?
तुम्हारी पथराई आँखों को देख मेरी आंख भी कब से रोई नहीं है...
वापस आ जाओ तुम कहाँ चली गई हो?
साथ अपने मेरी हँसी ले गई हो...
अपने होंठों के तले तुम्हारी आँखों को,
ढेर सा आराम दूंगा...
तुम्हारी आँखों में देखकर,
बाकि ज़िंदगी भी गुजार दूंगा...
तडपता है दिल जब ये,
मेरा पीछा करती हैं...
मुड़कर देखता हूँ तो,
छलका करती हैं...
अब सहन नहीं होता,
मुझे अपनी आँखों से मिला दो...
जहाँ तुम छुप गई हो...
मुझे भी छुपा दो....
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वाह क्या बात है। दिल को छू गई।