तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

देखो रात की सवारी आ रही...

देखो रात की सवारी आ रही...

मीठे गीत गुनगुना रही,
देखो रात की सवारी आ रही...
सांझ के रथ पर हो सवार,
चाँद-तारों से कर श्रृंगार...
आकाश का बना आँचल,
सूर्य को उसमे छिपा रही...
देखो रात की सवारी आ रही...
अन्धकार से केश लहराएँ,
मुख पे चांदनी सजाये...
लग रहा कोई नयी-नयी,
दुल्हन जैसे इठला रही है...
देखो रात की सवारी आ रही...
मंद हो चला उजाला,
लील, निशा के रूप का प्याला...
जग को मीठे स्वपनों में ले जा रही है...
देखो रात की सवारी आ रही...

मीठे गीत गुनगुना रही,
देखो रात की सवारी आ रही...
---मीत
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

सोचा जी लूँ जरा-जरा सी...

क्योंकि ज़िन्दगी है कम मेरी बाकि...
तो सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
थोड़ी धूप, थोड़ी धुंध और थोड़ी बरसात के लिए
और थोड़ी हौले-हौले से गुजरती...
अपनी साथी रात के लिए
जो हो गया सवेरा,
तो रात भी ढल जायेगी...
नयी सुबह ना जाने?
क्या पैगाम लेकर आयेगी...
कहीं पे मेरा मातम होगा,
कहीं ख़ुशी रूठ जायेगी...
पूरी होगी कहीं रिक्तता,
कहीं कमी रह जायेगी...
मौत ना देगी अब और वक्त जरा भी...
तो सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
थोड़ी रिश्ते, थोड़ी रकीब और थोड़ी राहगीर के लिए...
और थोड़ी मेरे खातिर बह चुके,
पावन से नीर के लिए...
जो हो गया सवेरा
तो नीर भी सूख जायेगा...
प्यास से तरसते इस दिल की,
कौन क्षुब्धा मिटाएगा..?
अब ना होंगे साथ तुम्हारे,
रात हमें ले जायेगी...
अब ना कोई नीर बहाना,
जब याद हमारी आयेगी...
क्या कर पाउँगा अब जो मिला इक लम्हा भी,
बस सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
जीने की आरजू में,
मरते चले गए, अब जो जीने चले हैं...
तो मौत आ गयी...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
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