तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

समर्पण

मेरे आंगन की क्यारी में खिले हैं, आज
बहुत सारे गेंदे के फूल...
जिन्हें माँ तोड़कर माला बना लेगी और
भगवान की मूरत पे चढा देगी...
कुछ फूल बचेंगे, जिन्हें भगवान के चरणों में जगह मिलेगी...
और कुछ ही देर बाद ये फूल मुरझा जायेंगे...
लेकिन अपनी खुशबू से घर का कोना-कोना महका जायेंगे...
फिर एक पल आयेगा जब ये खुशबू भी चली जाएगी...
माँ कहेगी की फूल सुख गए हैं
इन्हें मसल कर क्यारी में डाल आ
फिर उन्हीं फूलों के बीज से कुछ और नये फूल खिलेंगे....
पर किसी न किसी को समर्पण रहेंगे...

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बारिश

सुबह की नींद जब टूटी,
तो नज़र खिड़की से बाहर गई...
घर के बाहर पीपल के पेड़ के पत्तों पर बारिश की छोटी-छोटी मोतियों जैसी बूंदें चमक रहीं थीं...
पीपल का वो पेड़ मस्ती में झूम रहा था ......अपनी बड़ी-बड़ी विशाल टहनियों को मेरे घर के चारों और फैलाये ...
सुबह-सुबह ऐसा नज़ारा देख कर मन में एक खुशी सी जाग उठी ....
पेड़ के तने से लगकर एक बूढा भी खडा था, साथ में उसकी सायकिल, जिस के करियल पर बंधी थी एक अख़बारों की गठरी...
जिसे वो खुद भीग कर भी गीला होने से बचा रहा था...
शायद इस चिंता में की लोगो तक उसे ये खबरें पहुचानीहै, या फिर इनको बेचने पर जो कमाई होगी उससे अपना घर चलाना है
जो बारिश अब तक मुझे खूबसूरत लग रही थी, अचानक उसका चेहरा कुरूप लगने लगा....
हाँ बारिश से अच्छा वो पीपल का पेड़ लग रहा था...

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सवाल

अपने देश पर अपनी आन, बान और जान न्योछावर करने वाली वीरंगनाओ से भारत का पुराना नाता रहा है!
रानी लक्ष्मी बाई, पुतली बाई, अजीजन बाई !
भारत के इतिहास में इन वीरंगनाओ के नाम स्वर्ण अक्षरों में हमेशा अमिट रहेंगे! देश के लिए आज़ादी की लड़ाई में इन वीरंगनाओ ने अहम् भूमिका निभाई थी, जिनसे आज भी प्रेरणा लेकर भारत की बेटियाँ किरण बेदी और सनिता बन कर अपने देश का नाम रौशन कर रही हैं!
आज महिलाएं हर दिशा में पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिल कर चल रही हैं, हर तबके में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के साथ बराबर की रही है! देश के बच्चे-बच्चे पर महिलाएं अपनी छाप छोड़ रहीं हैं!
कहीं वो मा है, कहीं बेटी है, कहीं बहू है, तो कहीं बहन है.... उसके कई किरदार हैं जिन्हें वो बखूबी निभाती हैं! महिलाओं ने इस पुरुष प्रधान समाज में अपनी म्हणत, लगन और काबिलियत के दम पर एक अलग पहचान बनाईं है
इतना सब होने के बाद भी, सवाल यह खडा होता है की क्या आज महिलाओं के साथ पूरी तरह से न्याय हो रहा है?
क्या देश में महिलाएं पूरी तरह से सुरक्षित हैं?
टीवी का कोई चैनल लगा कर देखो , अखबार या किसी पत्रिका का कोई पृष्ठ, आये दिन उसमें महिलाओं पर होने वाले अन्याय की खबरें चपटी रहती हैं!
देश के हर कोने में लगभग ७० फीसदी महिलाएं अपने पति, ससुराल वालो या अन्य किसी भी तरह से अत्याचार का शिकार हो रही हैं! कुछ महिलाएं अपने साथ हो रहे अत्याचारों को लोगो के सामने लेन में या किसी को बताने की बजायउसे छिपाना बेहतर समझती हैं, तो कुछ इन अत्याचारियोंके खिलाफ लड़तीहैं!
जो महिलाएं अत्याचार और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठती हैं, क्या उन्हें पूरी तरह से इन्साफ मिल पता है?
देखा जाये तोकहीं कहीं महिलाओं की एक बड़ी संख्या अन्यायियों से जूझ रही है!
देश में महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए तमाम योजनायें चलाई जाती हैं, जिसके तहत भ्रूण-हत्या, दहेज, आदि के मामले में दोषी लोगो के खिलाफ सख्त कानून होते हैं, पर क्या इन मामलों में लिप्त लोगो को कानून सजा देता है...? शायद नहीं.....
भ्रूण-हत्या और दहेज और कन्या पैदा होने पर उसकी हत्या के कितने ही दोषी खुलेआम बेफिक्री से घूम रहे हैं...कितनी ऐसी कन्या जो आज किरण बेदी, मदर टेरेसा या सुनीता विलियम्स हो सकतीं थी, पैदा होते ही मार दी गयीं, क्या उनके साथ हमारा कानून इन्साफ कर पाया है?
सबसे ज्यादा आश्चर्य तब होता है, जब पता चलता है की एक माँ ने अपने पति के साथ मिलकर पुत्र की चाह में अपने गर्भ में ही अपनी बेटी को मरवा दिया! क्यों कुछ महिलाएं यह भूल जाती हैं की वो भी एक औरत हैं.....

नक्शा

आज सुबह जब में सो कर उठा तो,
मैंने देखा की मेरे कमरे का फर्श खून से सना है....
मेरी नज़र दीवार पर टंगे नक्शे पर गई ,
में यह देख कर काँप गया की यह खून नक्शे पर
बने जयपुर के टुकड़े से
बूँद-बूँद कर टपक रहा था....

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फर्ज

सागर मंथन में एक बार कभी विषपान किया था शिव तुमने,
जीवन मंथन में रोजाना ही गरल पिया है मानव ने
हम भी भंग की खा बूटी सच से आंख चुरा सकते थे
पीकर एक बार ही विष का प्याला
फर्ज से मुक्ति पा सकते थे!
कैद से इस निर्गुण शरीर की ,
आत्मा को अपनी छुडा सकते थे,
होकर के दूर इस पापी जग से,
दूजी दुनिया में जा सकते थे!
लेकिन फिर ऐसा करने से,
मेरी आत्मा ने रोका मुझको
मोह, माया, लोभ, क्रोध और लालच,
इन सबकी भट्टी में झोंका हमको!
बहुत की कोशिश हमने शिव जी,
अपना फर्ज निभाने को!
सुलग गए हम, झुलस गए हम,
माबाप का सपना पाने को ...

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खून

सड़क पर जो पड़ा था

उस लहू का रंग लाल था

न उसका कोई मज़हब था

न उसका कोई इमान था

न वो हिन्दू, न सिक्ख, न इसाई , न मुसलमान था

वो तो बस खून था और उसका रंग लाल था...

: नवीन

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इंसान

हर रोज में बेच रहा हूँ
अपने ज़मीर को
हर रोज अपनी
आत्मा को तड़पा रहा हूँ
हर रोज एक नया झूठ बोलकर
अपनी अतृप्त क्शुब्धा को बुझा रहा हूँ
देखो में आज का इंसान हूँ
अपनी इंसानियत को बेच कर खा रहा हूँ...
नवीन भैया 
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