तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

पलकों से टपके, टूटे से ख्वाब ढूंढता हूँ...

हर सुबह बिस्तर की सिलवटों में...
पलकों से टपके, टूटे से ख्वाब ढूंढता हूँ...
हांथों से खो गए हैं,
कुछ रिश्तों के सिरे थे...
उलझा कब से इनमे,
बेहिसाब ढूंढता हूँ...
ना पा सका हूँ, खुद को,
अब उम्र कटती जाती,
कल से ही हर कहीं पे,
मैं आज ढूंढता हूँ...
होते ही सहर गाती है,
कोयल भी गीत सुरीला,
पर मैं तो मस्जिदों की,
अजां पे झूमता हूँ...
पलकों से टपके, टूटे से ख्वाब ढूंढता हूँ...
तन हो चला है घायल,
काँटों से ये घिरा है,
छूने इन्हें होंठों से,
बेबाक घूमता हूँ...

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

छिन रहा है मतदाताओं का हक़...

लोकसभा चुनाव आनेवाले हैं और इसके लिए सभी राजनितिक दलों ने अपने अपने सब्जबाग मतदाताओं को दिखाने शुरू कर दिए हैं...
वैसे तो आप भी सोचते होंगे की दोगले और भृष्ट नेताओं के खिलाफ कुछ ऐसी वोटिंग हो जो उनके खिलाफ जाये... क्यों मजा आ जायेगा ना ?लेकिन हमारे नेतागण नहीं चाहते की ऐसा मतलब उनके खिलाफ कोई वोटिंग कर सके इसलिए केंद्र सरकार ने पिछले ५ सालों से चली आ रही याचिका 'पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज' (इस संस्था ने याचिका में मतदाताओं को उम्मीदवारों को नकारने का हक दिए जाने की मांग की है।) जो की अब तक लंबित है पर अभी तक कोई सुनवाई नहीं होने दी है...
इस बारे में केंद्र सरकार का कहना है की यह याचिका अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल की गई है, लेकिन इसमें उठाया गया मुद्दा मौलिक अधिकार के हनन का नहीं है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई नहीं कर सकता है। मत देने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि नागरिकों को प्राप्त विधायी अधिकार है। वैसे भी याचिका स्वीकार किए जाने लायक नहीं है, क्योंकि इसमें की गई मांग अव्यावहारिक है।
वैसे जो हक़ यह संस्था मांग रही है उसके बारे में केंद्र सरकार का कहना है की इसमें व्यवस्था है कि यदि कोई व्यक्ति अपना मत नहीं देना चाहता है तो वह चुनाव अधिकारी के पास जाकर अपनी इच्छा बता सकता है और चुनाव अधिकारी उसकी राय को एक रजिस्टर में दर्ज कर हस्ताक्षर कराता है। अनुच्छेद 128 के तहत चुनाव अधिकारी उस राय को गोपनीय रखने के लिए बाध्य है। अन्यथा उसे तीन महीने तक की कैद हो सकती है। उम्मीदवार को नकारने की राय चुनाव अधिकारी को बताए जाने से मत की गोपनीयता के अधिकार का हनन होता है।

आप ही सोचिये जिस तरह से नेता लोग राजनीती का गन्दा खेल खेलते हैं. कुछ न कुछ तो ऐसा होना चाहिए की जनता इन्हें इनकी औकात बता सके.. पर केंद्र सरकार नहीं चाहती की ऐसा हो.. क्योंकि उसके सिपहसालारों को मुह की खानी पड़ जायेगी..
इस बात पर सोचें...

याचिका में मांग की गई है कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे मतदाता किसी भी उम्मीदवार के पसंद न आने की स्थिति में 'उपरोक्त में कोई नहीं' का बटन दबा सके। मतों की गिनती करते वक्त इन वोटों को भी गिना जाए और अगर नकारात्मक वोटों का प्रतिशत ज्यादा निकले तो वह चुनाव रद कर दिया जाए।
इस याचिका में ज्यादा कुछ नहीं केवल यही माँगा गया है की यदि कोई उम्मीदवार किसी और क्षेत्र से आकर हमारे क्षेत्र से चुनाव लड़ रहा है, या उसका पिछला रिकॉर्ड ख़राब है यानि वह आपराधिक रिकॉर्ड रखता है और हम जानते हैं और हमें वह पसंद नहीं तो हम उसके खिलाफ नेगेटिव वोटिंग कर सकते हैं... इसमें बुरा क्या है...

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फर्ज

सागर मंथन में एक बार कभी
विषपान किया था शिव तुमने,
जीवन मंथन में रोजाना ही
गरल पिया है मानव ने
हम भी भंग की खा बूटी
सच से आंख चुरा सकते थे
पीकर एक बार ही विष का प्याला
फर्ज से मुक्ति पा सकते थे!
कैद से इस निर्गुण शरीर की,
आत्मा को अपनी छुडा सकते थे,
होकर के दूर इस पापी जग से,
दूजी दुनिया में जा सकते थे!
लेकिन फिर ऐसा करने से,
मेरी आत्मा ने रोका मुझको मोह,
माया, लोभ, क्रोध और लालच,
इन सबकी भट्टी में झोंका हमको!
बहुत की कोशिश हमने शिव जी,
अपना फर्ज निभाने को!
सुलग गए हम,
झुलस गए हम,
माँ बाप का सपना पाने को...

ये मेरी पुरानी पोस्ट है... आज फिर कुछ ऐसा हुआ जो खुद को लाचार पाया... तो ये पोस्ट फिर से पढ़ी और याद कर ली... और थोड़ी शिव से शिकायत कर ली...आप भी ऐसे दौर से गुजरे तो होंगे...
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