निसदिन अहसास कराता है।
वो जाना सा ही चेहरा है,
पर जाने क्यों धुंधलाता है।
रातों को उंघती निंदिया में,
थप-थप थपिया दे जाता है।
जब सोचूँ में, तब चौकूं में,
वो कोसों ही मुस्काता है।
कोई दूर मुझे बुलाता है...
उलझी सी राहों में अक्सर,
दिल उसको ढूंढा करता है।
वो दूर नदी की लहरों सा,
आता है फिर चला जाता है।
कोई दूर मुझे बुलाता है...
क्यों अलसाई सी सुबह में,
वो किरणों सा बन जाता है।
में छूना उसको चाहता हूँ,
वो मुझको छु कर जाता है।
कोई दूर मुझे बुलाता है...
निसदिन अहसास कराता है।
वो जाना सा ही चेहरा है,
पर जाने क्यों धुंधलाता है।
कोई दूर मुझे बुलाता है...
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