मुस्काते तेरे होंठों से,
क्यों मैंने तब्बसुम चुरा लिया।
हीरे सी तेरी आँखों में,
क्यों दर्द का पानी मिला दिया।
हाँ! मैंने तुमको रुला दिया...
मासूम से तेरे चहरे पे,
बस खुशियाँ नाचा करती थीं।
खुशियों को छीना है तुझसे,
क्यों गम से नाता करा दिया।
हाँ! मैंने तुमको रुला दिया...
कर दिया क्यों मैंने उदास,
एक चंचल, चितवन से मन को।
क्या पूरा करना था वादा,
किस कसम को मैंने निभा दिया।
हाँ! मैंने तुमको रुला दिया...
रोता है मन ये मेरा भी,
रोता सा जग ये लगता है।
मैंने बुझा हँसी की शम्मा को,
आंसुओं का दिया जला दिया।
हाँ! मैंने तुमको रुला दिया...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
चलिए अब जल्दी से हंसा भी दीजिये..
..सुंदर कविता !!
Kya baat hai bhut hi badhiya likh rhe hai. vakai bhut sundar bhav ke sath likhi hai ye kavita. ati uttam.
बहुत मासूम सा इकरारनामा है।
इस जोकर का मुह बना हुआ क्यों है ?
aapki kavitaon mein itna dard aur aansoon kyon hai? aap to sabke meet hain aapko to khushi ki kavitaen likhni chahiye.
wakai rula diya aapne.........
uttam... ati uttam..... ("_" )
aapki saare comments pade...achcha lagaa ke aapko meri rachnayen pasand aayi....aur ye aapki rachna marm sparshi hai...khoobsoorat