तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

मैंने तुमको रुला दिया...












मुस्काते तेरे होंठों से,
क्यों मैंने तब्बसुम चुरा लिया।
हीरे सी तेरी आँखों में,
क्यों दर्द का पानी मिला दिया।
हाँ! मैंने तुमको रुला दिया...
मासूम से तेरे चहरे पे,
बस खुशियाँ नाचा करती थीं।
खुशियों को छीना है तुझसे,
क्यों गम से नाता करा दिया।
हाँ! मैंने तुमको रुला दिया...
कर दिया क्यों मैंने उदास,
एक चंचल, चितवन से मन को।
क्या पूरा करना था वादा,
किस कसम को मैंने निभा दिया।
हाँ! मैंने तुमको रुला दिया...
रोता है मन ये मेरा भी,
रोता सा जग ये लगता है।
मैंने बुझा हँसी की शम्मा को,
आंसुओं का दिया जला दिया।
हाँ! मैंने तुमको रुला दिया...

© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
7 Responses
  1. L.Goswami Says:

    चलिए अब जल्दी से हंसा भी दीजिये..

    ..सुंदर कविता !!


  2. Kya baat hai bhut hi badhiya likh rhe hai. vakai bhut sundar bhav ke sath likhi hai ye kavita. ati uttam.


  3. admin Says:

    बहुत मासूम सा इकरारनामा है।


  4. L.Goswami Says:

    इस जोकर का मुह बना हुआ क्यों है ?


  5. Priyambara Says:

    aapki kavitaon mein itna dard aur aansoon kyon hai? aap to sabke meet hain aapko to khushi ki kavitaen likhni chahiye.


  6. Bandmru Says:

    wakai rula diya aapne.........

    uttam... ati uttam..... ("_" )


  7. Reet Says:

    aapki saare comments pade...achcha lagaa ke aapko meri rachnayen pasand aayi....aur ye aapki rachna marm sparshi hai...khoobsoorat


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