तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

नक्शा

आज सुबह जब में सो कर उठा तो,
मैंने देखा की मेरे कमरे का फर्श खून से सना है....
मेरी नज़र दीवार पर टंगे नक्शे पर गई ,
में यह देख कर काँप गया की यह खून नक्शे पर
बने जयपुर के टुकड़े से
बूँद-बूँद कर टपक रहा था....

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