तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

खून

सड़क पर जो पड़ा था

उस लहू का रंग लाल था

न उसका कोई मज़हब था

न उसका कोई इमान था

न वो हिन्दू, न सिक्ख, न इसाई , न मुसलमान था

वो तो बस खून था और उसका रंग लाल था...

: नवीन

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