शनिवार की शाम को कनाट प्लेस के सेंट्रल पार्क का मंज़र देख दिल बहुत उदास था, रविवार को ऑफिस की छुट्टी थी। मन घर में नहीं लग रहा था, तो सोचा की थोड़ा बहार टहल आता हूँ। घर के सामने ही मेट्रो स्टेशन है सोचा वहीँ सीढियों पर बैठ जाऊं आते-जाते लोगों को देखूँगा तो शायद मन बहल जाए। पर वहां सन्नाटा पसरा था। आदमी का नामोनिशान ना था। मुझे पता चला की मेट्रो बंद है...
खैर! मैं अपने मुहल्ले की गली के बाहर आकार खड़ा हो गया।
काफी देर तक खड़ा रहा, गली के बाहर बहुत से ठेले-खोमचे वाले खड़े थे। जिनमे मूंगफली, नमकीन, जलेबी और तीन ठेले अंडो के थे। ये तीनो अंडे की रेहडी लगाने वाले हमारी गली में ही रहते हैं।
एक अंडे की रेहडी लिए हमारी गली के दायीं ओर एक ११-१२ साल का लड़का खड़ा था। ये भी हमारी गली में ही रहता है। सुबह स्कूल जाता है, दोपहर को घर का काम और शाम को अपना और शायद अपने परिवार का पेट पालने के लिए लोगो को ओम्लेट बना-बना कर खिलाता है। अबसे कुछ साल पहले उसके पिता की एक गोली खाने के कारन मौत हो गई। सुना था की उसके पापा ने कोई गोली खाई, उन्हें उलटी आयी और बस ज़िन्दगी खत्म।
इससे पहले वो ठेला उसके पापा ही लगाते थे। बम फट जाने की वजह से सड़क बिलकुल सुनसान थी बस इक्का-दुक्का आदमी ही थे.उस लड़के का नाम कालू है. कभी-कभी उसे देखकर ऐसा लगता है की जैसे उसका बचपन किसी अंधकार में समाता चला जा रहा है. खेलने कूदने की उम्र में वो पेन में ओम्लेट को उछालता है...
मैं उसे ओम्लेट बनाते देख रहा था। ना जाने कब उस लड़के की रेहडी पर दो युवक चुपचाप आकर शराब पीने लगे थे, जिसका पता शायद उसे भी ना चला था...थोडी देर बाद ही एक पुलिस वाला वहां आया और सभी से बोला की की चलो भाई रेहडी लेकर चलो...जो दो अंडे की रेहडी वाले थे वो बोले की हमारा तो चालान कट चूका है... पुलिस वाला अपने मुँह को सडाने लगा, जैसे की उसके हाथ में आने वाली लक्ष्मी उसके हाथ से नक़ल गयी हो.उन रेहडी वालो को इंकार कर वो उस लड़के की तरफ बढ़ गया...
वहां उन लड़को शराब पीता देख उसे जैसे मुराद मिल गयी हो...वो उस जरा से बच्चे को गन्दी-गन्दी गलियां देकर जलील करने लगा... और रेहडी अपने साथ लेकर चलने को कहने लगा..लड़का अंकल जी... अंकल जी... मुझे नहीं पता ये लोग कब आकार शराब पीने लगे कहता रहा... लेकिन वो पुलिस वाला बहरा हो चूका था...
तभी तो उसे वो धमाके भी सुनायी ना दिए थे जो एक दिन पहले हुए थे और ना ही सुने दे रही थी उस लड़के की गुहार....
(तस्वीर उसी बच्चे कालू की है)
आगे की बात मैं आपको बताना नहीं चाहता...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
खैर! मैं अपने मुहल्ले की गली के बाहर आकार खड़ा हो गया।
काफी देर तक खड़ा रहा, गली के बाहर बहुत से ठेले-खोमचे वाले खड़े थे। जिनमे मूंगफली, नमकीन, जलेबी और तीन ठेले अंडो के थे। ये तीनो अंडे की रेहडी लगाने वाले हमारी गली में ही रहते हैं।
एक अंडे की रेहडी लिए हमारी गली के दायीं ओर एक ११-१२ साल का लड़का खड़ा था। ये भी हमारी गली में ही रहता है। सुबह स्कूल जाता है, दोपहर को घर का काम और शाम को अपना और शायद अपने परिवार का पेट पालने के लिए लोगो को ओम्लेट बना-बना कर खिलाता है। अबसे कुछ साल पहले उसके पिता की एक गोली खाने के कारन मौत हो गई। सुना था की उसके पापा ने कोई गोली खाई, उन्हें उलटी आयी और बस ज़िन्दगी खत्म।
इससे पहले वो ठेला उसके पापा ही लगाते थे। बम फट जाने की वजह से सड़क बिलकुल सुनसान थी बस इक्का-दुक्का आदमी ही थे.उस लड़के का नाम कालू है. कभी-कभी उसे देखकर ऐसा लगता है की जैसे उसका बचपन किसी अंधकार में समाता चला जा रहा है. खेलने कूदने की उम्र में वो पेन में ओम्लेट को उछालता है...
मैं उसे ओम्लेट बनाते देख रहा था। ना जाने कब उस लड़के की रेहडी पर दो युवक चुपचाप आकर शराब पीने लगे थे, जिसका पता शायद उसे भी ना चला था...थोडी देर बाद ही एक पुलिस वाला वहां आया और सभी से बोला की की चलो भाई रेहडी लेकर चलो...जो दो अंडे की रेहडी वाले थे वो बोले की हमारा तो चालान कट चूका है... पुलिस वाला अपने मुँह को सडाने लगा, जैसे की उसके हाथ में आने वाली लक्ष्मी उसके हाथ से नक़ल गयी हो.उन रेहडी वालो को इंकार कर वो उस लड़के की तरफ बढ़ गया...
वहां उन लड़को शराब पीता देख उसे जैसे मुराद मिल गयी हो...वो उस जरा से बच्चे को गन्दी-गन्दी गलियां देकर जलील करने लगा... और रेहडी अपने साथ लेकर चलने को कहने लगा..लड़का अंकल जी... अंकल जी... मुझे नहीं पता ये लोग कब आकार शराब पीने लगे कहता रहा... लेकिन वो पुलिस वाला बहरा हो चूका था...
तभी तो उसे वो धमाके भी सुनायी ना दिए थे जो एक दिन पहले हुए थे और ना ही सुने दे रही थी उस लड़के की गुहार....
(तस्वीर उसी बच्चे कालू की है)
आगे की बात मैं आपको बताना नहीं चाहता...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
very nice
javab nahi
दिल को छू लेने वाली पोस्ट।
सुंदर रचना. बधाई स्वीकारें.
एक अच्छी पोस्ट है .
न जाने तंत्र के लोगों का व्यवहार कब बदलेगा .
सही लिखा है ..अच्छी पोस्ट है यह
" very good artical, kya hoga iss desh ka ptta nahee..."
Regards
कितने ही खोमचे और रेहड़ीवालों की दाल-रोटी यूं ही गुजरती है। कब किसी दिन कोई डंडा फटकार दे पता नहीं।
बच्चों की आवाज कौन सुनेगा ?
मन दुःख ओर अवसाद से भर उठा है ,लगता है पुलिस वालो में सवेदना मर गयी है ,मैंने कितनी बार ट्रेन में सामान बेचते लड़को से उन्हें पैसा ऐठते देखा है ,कई बार मन वित्र्ष्ना से भर उठता है....कही न कही उन्हें किसी विशेष ट्रेनिंग की जरुरत है ,उससे कही ज्यादा उनके पास होने के लिए खास तौर से कुछ प्रशन तैयार किए जाने चाहिए जिससे उनकी मानसिकता का पता लगे...
जिस काम के लिए ये लोग पैसा लेते है सरकार से वो ये काम करते नही। बस अपनी पावर का इस्तेमाल अपनी कमाई बढाने के लिए करते है। सही लिखा है आपने।
उम्दा लेखन-गहरे उतर गया/
बहुत ही सुंदर
dukh hota hai aisi baaten dekh sun kar....
ab jaise har taraf hi udaasi ke alawa aur kuch mehsoos hi nahi hota....pata nahin kis mitti ke gadhe jaate hai aise log....ghrina ke siway aur koi bhavna hi nahi bachti ,aise logo ke liye,,,,,,sach is sawaal ka koi uttar,kisi ke paas nahi....bachhon par atyaachaar karne wale in amaanushikon ke liye......
sach me aesi baato ko sun kar me bhut pareshan ho jati hu. bhut hi badhiya v marmik post. likhte rhe. Meet ji aapne mere lekh par tipni di uske liye bhut bhut aabhar.
ek kathor sach ..jise hazam karna bahut mushkil hai..
दिल को छू लेने वाली पोस्ट। बधाई स्वीकारें.