हर इंसान के जीवन में माँ का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है! कुछ लोगों के लिए माँ ही जीवन होती है तो कुछ लोग माँ को भगवान का दर्जा देते हैं...मेरे भी जीवन में मेरी माँ का अहम् स्थान है...जो आतंकवादी दिल्ली में बम ब्लास्ट के आरोप में पकडे गए हैं। वो आतंकवादी हैं या नहीं ये बात पूरेविश्वास से कह पाना जरा मुश्किल
है! या तो भगवान जानता है की वो गुनाहगार
हैं और या फ़िर वो आतंकवादी ख़ुद...
उन्हीं में से एक आरोपी की माँ का इंटरव्यू टीवी पर देखा और कई जगह पढ़ा भी जिसे पढ़ और देख कर मेरी ऑंखें नम हुए बिना ना रह सकीं।
ऑफिस में इसी को लेकर बात चल रही थी, तो किसी ने मुझसे कहा की माँ तो ऐसी ही होती है, चाहे उसका बेटा कितना भी बुरा हो। वो हमेशा अपने बेटे का ही पक्ष लेती है...
मुझे पता नहीं ये बात क्यों अच्छी नहीं लगी, क्योंकि जहाँ तक में अपनी माँ को जनता हूँ, वो तो बिल्कुल ऐसी नहीं हैं... और आप लोगो को याद होगी फ़िल्म मदर इंडिया! कहने को तो ये सिर्फ़ फ़िल्म है, लेकिन उसमे एक माँ के जज्बातों का नया रूप लोगो के सामने आया था, इसीलिए फ़िल्म ओस्कर तक पहुंची थी...जब मैंने अपने सहकर्मचारियों से कहा की नहीं हर माँ ऐसी नहीं होती, तो वो मेरी बात का मजाक उड़ाने लगे.
दुनिया में बहुत सी ऐसी माँ हैं जो वक्त पढने पर अपने बेटे को भी सजा देने से नहीं चूकेगी।
शायद इसी बात को लोगो को बताने के लिए फ़िल्म मदर इंडिया का निर्माण हुआ था...
मेरी माँ भी किसी मदर इंडिया से कम नहीं है, वो मेरे खाने, पीने, सोने हर छोटी से छोटी चीज का ख्याल रखती हैं, वो मेरी हर बात जानती हैं, मैं कब क्या कर सकता हूँ, कब क्या नहीं, किस चीज से नफरत हैं, किस चीज से प्यार सब कुछ जानती हैं... कई बार में माँ से कुछ छिपा रहा होता था तो वो सच बात बोल देती थी और में मन ही मन हैरान हो जाता था की माँ ने मेरे मन की बात कैसे कह दी...
एक बचपन का वाक्या आपसे बाँटना चाहूँगा। मैं चान्दिनी चौक के दरीबा के एक स्कूल में नर्सरी क्लास में पढता था, बहुत छोटा था. एक दिन स्कूल के किसी बच्चे का जन्मदिन था उसके पापा ने पूरे स्कूल को ज्योमेट्री बॉक्स बांटा। मुझे भी मिला में खुशी फुदकता हुआ घर पहुँचा और माँ को वो बॉक्स दिखाया। देखते ही मेरी माँ पूछती है की कहाँ से लाया? मैंने कहा की सबको मिला है किसी का जन्मदिन था, उसके पापा ने बांटा है...पर माँ को लगा की मैं चोरी कर के ले आया हूँ, उन्होंने कहा सच बता दे... अब उन्हें कौन बताता की मैं सच ही तो कह रहा था। माँ ने मेरी एक नहीं सुनी और मुझे खूब पीटा और कोठरी में बंद कर दिया। कोठरी घर का वो कमरा था जिसमे हम कबाड़ और टूटी-फूटी चीजे रख देते थे। मैं रोते -रोते कहता रहा की माँ मैंने चोरी नहीं की। पर माँ ने मेरी नहीं सुनी। अगली सुबह माँ मुझे और उस ज्योमेट्री को लेकर मेरी क्लास टीचर के पास पहुँची और उनसे बोली की देखो ये मेरा बेटा किसी की ज्योमेट्री उठा ले गया है। तब टीचर ने उन्हें बताया की नहीं ये इसी का है. और टीचर से सच पता चलने के बाद माँ की आँखों में आंसूं आ गए और उन्होंने मुझे गले से लगा लिया...और घंटों प्यार करती रहीं...
खैर जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ मेरी माँ मुझे पूरी तरह जान गई। पर मैं उन्हें आज तक अच्छी तरह जान नहीं पाया हूँ।
अभी इस लेख को लिखने से पहले मैंने माँ को फोन किया ये पूछने के लिए की मैं उस वक्त कौन सी क्लास में था, क्योंकि मुझे ठीक से याद नहीं था... तो माँ ने पूछा की क्यों पूछ रहा है? मैंने कहा ब्लॉग पर डालूँगा तो बोली- पागल और फोन रख दिया....
सच में माँ दुर्गा भी है और काली भी उसके हजार रूप हैं....
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