खुशियाँ तो बेवफा हैं,
छोड़ चली जाती हैं,
फूलों का क्या भरोसा,
काँटों पर मुझे ऐतबार है,
शायद तभी,
मेरे दिल को दर्द से प्यार है...
छाया में वो बात कहाँ
साया भी खो जाता है,
धूप की तपिश से ही तो,
मन भी चमकदार है,
शायद तभी,
मेरे दिल को दर्द से प्यार है...
सकून में ना आया,
आराम कभी मुझको,
लगता है जिस्म मेरा
बेचैनी का तलबगार है,
शायद तभी,
मेरे दिल को दर्द से प्यार है...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
छोड़ चली जाती हैं,
फूलों का क्या भरोसा,
काँटों पर मुझे ऐतबार है,
शायद तभी,
मेरे दिल को दर्द से प्यार है...
छाया में वो बात कहाँ
साया भी खो जाता है,
धूप की तपिश से ही तो,
मन भी चमकदार है,
शायद तभी,
मेरे दिल को दर्द से प्यार है...
सकून में ना आया,
आराम कभी मुझको,
लगता है जिस्म मेरा
बेचैनी का तलबगार है,
शायद तभी,
मेरे दिल को दर्द से प्यार है...
राहों में मेरी कांटे जरा बिछाओ यारो... |
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© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
पांव ज़ख्मी न हो तो,
दौड़ने का मज़ा क्या है....
बहुत ही शानदार रचना. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
राहों में मेरी कांटे जरा बिछाओ यारो...
पांव ज़ख्मी न हो तो,
दौड़ने का मज़ा क्या है...
यूँ तो पूरी रचना बेहद ही लाजवाब है............पर इन लाइनों ने जान ले ली मीत जी...........गज़ब का लिखा है
हम्म एक युवा दिल तो हमेशा ही दर्द का तलबदार है। वो गीत याद है ना आपको
मुझे दर्दे दिल का पता ना था, मुझे आप किस लिए मिल गए..
बहुत ही सुंदर रचना, लेकिन मीत भाई हम हमेशा आप की राहो मे फ़ूल बिछायेगे.
धन्यवाद
कुछ न कुछ दर्द तो जरुर छुपा है आपकी बातों में..तभी तो इतनी गज़ब की शायरी निकल रही है...!बहुत अच्छी रचना.. लिखी है आपने...
मीत भाई पहले ये बताईए। "केवल आपके लिए।" ये "आप" कौन है। :-) वैसे रचना बहुत ही अच्छी है हमेशा की तरह । पर एक बात आज कहूँगा इतना नकारात्मक भी मत सोचा करो।
आहा...आखिरी वाली पंकतियां तो ग्जब की बन पड़ी हैं मीत भाई
-छाया में वो बात कहाँ
साया भी खो जाता है,
बहुत खूब!
-'राहों में मेरी कांटे जरा बिछाओ यारो...
पांव ज़ख्मी न हो तो,
दौड़ने का मज़ा क्या है....'
---वाह! क्या बात है!
छाया में वो बात कहाँ
साया भी खो जाता है,
धूप की तपिश से ही तो,
मन भी चमकदार है,
शायद तभी,
bhut khoob
man ko chuti huai kavita
दर्द से प्यार की वजह आपने बखूबी बयां कर दी है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
खुशियाँ तो बेवफा हैं,
छोड़ चली जाती हैं,
फूलों का क्या भरोसा,
काँटों पर मुझे ऐतबार है,
शायद तभी,
मेरे दिल को दर्द से प्यार है...
उम्दा रचना