घट बहता यूँ, ज्यों ये तृष हो,
ना जानू, कौन हश्र होगा,
चिंतित है कैसे हो तरण,
अब कौन किनार ठहर होगा,
जीवन-तरणी की तुम्हीं प्रिये,
पुलकित पतवार बन जाना
मैं नश्वर, अंधक नहरम हूँ,
उस पार मुझे तुम ले जाना!
हैं चहुँओर भंवर गहरे,
हर वक्त सधे मुझ पर पहरे,
ना बेध इन्हें मैं पाऊंगा,
तुम-बिन ना मैं तर पाऊंगा,
सागर-लहरों सा प्रेम तुम्हारा,
मैं अद्य, अथाह, मैं आवारा...
तुम हर्ष-क्षण को रच जाना,
उस पार मुझे तुम ले जाना!
ना जानू, कौन हश्र होगा,
चिंतित है कैसे हो तरण,
अब कौन किनार ठहर होगा,
जीवन-तरणी की तुम्हीं प्रिये,
पुलकित पतवार बन जाना
मैं नश्वर, अंधक नहरम हूँ,
उस पार मुझे तुम ले जाना!
हैं चहुँओर भंवर गहरे,
हर वक्त सधे मुझ पर पहरे,
ना बेध इन्हें मैं पाऊंगा,
तुम-बिन ना मैं तर पाऊंगा,
सागर-लहरों सा प्रेम तुम्हारा,
मैं अद्य, अथाह, मैं आवारा...
तुम हर्ष-क्षण को रच जाना,
उस पार मुझे तुम ले जाना!
______________मीत
मुझे बहुत अच्छी हिन्दी नहीं आती, बस एक कोशिश है, हिन्दी में कविता लिखने की...
नहरम = एक प्रकार की छोटी मछली को कहते हैं.
तृष = जलाशय पार करने के बेडे को कहते हैं.
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अम्मा यार हमसे ही मजाक। इतने सुन्दर शब्दों को प्रयोग किया और ऊपर से कहते हो मुझे बहुत अच्छी हिंदी नही आती। (तो जनाब ये क्या है तृष,जीवन-तरणी , अंधक,अद्य,) बंधु आप बहुत अच्छी हिंदी लिख लेते हो। ये तो आपका बडप्पन है या फिर वही जो मैं कह रहा था कि ......... :-)
वैसे यार दिल खुश हो गया पढकर।
हैं चहुँओर भंवर गहरे,
हर वक्त सधे मुझ पर पहरे,
ना बेध इन्हें मैं पाऊंगा,
तुम-बिन ना मैं तर पाऊंगा,
सागर-लहरों सा प्रेम तुम्हारा,
मैं अद्य, अथाह, मैं आवारा...
तुम हर्ष-क्षण को रच जाना,
क्या कहूँ जी शब्द नही मेरे पास तारीफ करने के लिए। इतना कहूँगा कि अद्भुत।
मैं जो कहना चाह रही थी सुशील जी ने पहले ही कह दी है..
अगर आपको हिंदी नहीं आती ,तब आपने ऐसी लिखी है तो हिन्दी में पारंगत होने पर आप कैसा लिखेंगे....सोच रही हूँ...
लाजवाब लिखा है आपने...एकदम अद्भुद...
बड़ा ही आनंद आया आपकी इस सुन्दर रचना को पढ़कर...
सुन्दर लेखन के लिए शुभकामना.
आपका इतना सुन्दर प्रयास , देखिये कैसे मन जुटा रहा है सबका......लेखनी यूं ही अविरल चलती रहे.....
namaskar mitr,
main bahut der se aapki kavitayen padh raha hoon .. aap bahut accha lihte hai .. man ko chooti hui bhaavnaye shabd chitr ban jaate hai .. ye kavita mujhe bahut acchi lagi ..man ko bhiga gayi...
badhai sweekar karen
dhanywad,
vijay
pls read my new poem :
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/05/blog-post_18.html
bahut sundar rachna
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सुन्दर शब्दों से रची हुयी रचना है ........... आपका हिंदी ज्ञान बहुत अच्छा है......... किसी से कम नहीं...........आपके पास सुन्दर भाव भी हैं शब्दों के पार और यही सफलता है
aap ki rachna bhut achchhi lagi
aap ki shabdo par bhut achchhi pakad hai
aap jaroor safalta ke shikhar tak pahunge aisi kamna rakhtai hu
तुम-बिन ना मैं तर पाऊंगा,
सागर-लहरों सा प्रेम तुम्हारा,
मैं अद्य, अथाह, मैं आवारा...
तुम हर्ष-क्षण को रच जाना,
उस पार मुझे तुम ले जाना!
बहुत ही सुन्दर कविता ..लय भी अच्छी बनी है..अब इतने तो कठिन शब्द [ तृष, , अंधक,अद्य ] हिंदी के प्रयोग किये हैं..
आज कल नियमित नहीं हूँ ब्लॉग्गिंग में इस लिए आप की पोस्ट भी पढने में देर हो गयी ..माफ़ी चाहूंगी.!
Aapki kavita or rachnao ki khasiat ye hai ki inme ehsaas hota he. sunder shabdo ka istemal karke kuch likh pana utna mushkil kaam nahi hai leking usme ehsaas daalna sabse badi baat. which i feel is most important.
क्या खुबसूरत पंक्तियाँ है!!!!
प्यार से मनुहार....बहुत सुन्दर.....सुन्दर और शुध्द हिन्दी.
अच्छी हिन्दी की बात कर रहे हो आप, आपने तो गजब की हिन्दी में कविता लिख डाली। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
रचना अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
हम चाहे मानें या फिर ना मानें लेकिन इस जीवन रूपी भंवर से निकलने के लिए ऊपरवाले की कश्ती का सहारा बहुत ज़रूरी है।
सुन्दर कविता