क्यों चला जाता है बचपन?
तोड़कर मासूमियत के अनगिनत स्वपन!
क्यों चला जाता है, वो नाना का घुमाना,
रातों को नानी का कहानी सुनाना,
गर्मी की लू से भरी दोपहरी,
याद आते हैं वो पल थे, सुनहरी?
क्यों चले जाते हैं, वो खट्टी-मीठी के पत्ते
वो छोटे-छोटे पाँव और लम्बे से रस्ते,
नीम की डाली पे, टंगा वो झूला,
वो मिट्टी का घरोंदा अभी तक ना भुला?
क्यों खो गयी आखिर वो बकरी की सवारी,
खिड़की के पास की वो कबूतर की अटारी?
हाथों में पिरोये उन धागों का खेल,
बगीचे की मिट्टी में, रामजी की रेल?
कहाँ है? वो बारिश के पानी की छप-छप,
वो सर्दी की रातों में घंटो की गपशप?
कुल्फिवाले की घंटी की टन-टन,
शर्तों में जीते, उन कंचों की खन-खन?
क्यों है दिल में, एक आस अब भी उसकी?
आती बहुत है याद अब भी उसकी!
अब ना मिलेगा वो, सादादिल मौसम,
खो गया है, ना जाने कहाँ मेरा वो बचपन...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
तोड़कर मासूमियत के अनगिनत स्वपन!
क्यों चला जाता है, वो नाना का घुमाना,
रातों को नानी का कहानी सुनाना,
गर्मी की लू से भरी दोपहरी,
याद आते हैं वो पल थे, सुनहरी?
क्यों चले जाते हैं, वो खट्टी-मीठी के पत्ते
वो छोटे-छोटे पाँव और लम्बे से रस्ते,
नीम की डाली पे, टंगा वो झूला,
वो मिट्टी का घरोंदा अभी तक ना भुला?
क्यों खो गयी आखिर वो बकरी की सवारी,
खिड़की के पास की वो कबूतर की अटारी?
हाथों में पिरोये उन धागों का खेल,
बगीचे की मिट्टी में, रामजी की रेल?
कहाँ है? वो बारिश के पानी की छप-छप,
वो सर्दी की रातों में घंटो की गपशप?
कुल्फिवाले की घंटी की टन-टन,
शर्तों में जीते, उन कंचों की खन-खन?
क्यों है दिल में, एक आस अब भी उसकी?
आती बहुत है याद अब भी उसकी!
अब ना मिलेगा वो, सादादिल मौसम,
खो गया है, ना जाने कहाँ मेरा वो बचपन...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
Very interesting poem.
I love to read Hindi blogs. I found your one very interesting. Keep on blogging.
Hi Mit
achha likha hai. keep it up.