11:15 AM
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by मीत
आज बहुत दिनों बाद कुछ लिख रहा हूँ, काफी दिनों से व्यस्तताओं के चलते ब्लॉग से दूर रहा ...
एक कोशिश की है दिल के जज्बातों को रचना बनाने की , उम्मीद है आपको पसंद आये ...
कमरे के कौने में धूप का टुकड़ा,
रोशनदान से छन कर आता.
छत पे माँ अचार और पापड सुखाती
और नीचे पार्क में पिता के दोस्तों का जमावड़ा होता.
देखता हूँ ख्वाब ये कब से?
काश उस मोहल्ले में मेरा भी घर होता..
आँगन में बच्चे धमा-चोकड़ी करते
और तुमने साड़ियों को रस्सी पे सुखाया होता..
सांझढले मैं थक कर आता
तुमने मेरे इंतज़ार में पलकों को बिछाया होता,,
देखता हूँ ख्वाब ये कब से?
काश उस मोहल्ले में मेरा भी घर होता..
--मीत
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
4:26 PM
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by मीत
गोबर से लिपे हुए आंगन नहीं दिखते..
गाँव के पास अब हाट नहीं लगते..
न कहीं, पेड़ों पे आम की बौर है.
न नदी के पानी का मध्यम सा शोर है.
वो चिमटा, वो फूकनी, वो चूल्हा कहाँ है?
अब तो बस पेट्रोल और डीजल का धुआं है.
डाली पे अब कहीं झूले नहीं टांगते..
गाँव के पास अब हाट नहीं लगते..
चौपाल पे हुक्कों की गुड़गुड़ नहीं है.
अम्मा के हांथो की गर्मी नहीं है.
पाठशाला की घंटी की टन टन कहाँ है?
अब तो के-बोर्ड की टक-टक जवान है.
रामू और गीता अब तितली नहीं पकड़ते..
गाँव के पास अब हाट नहीं लगते..
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
11:56 AM
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by मीत
आज बहुत दिनों बाद आना हुआ. ब्लॉग से कुछ दिनों के लिए नाता ही टूट गया था... पर फिर अचानक एक अंजान दोस्त की मेल आई और खींच लायी मुझे फिर यहीं... एक छोटी सी कल्पना या फिर सच जो भी है? आपकी नज़र है... उम्मीद है पसंद आये...
तुम्हारा मीत
टिमटिमा पाते नहीं ये,
धुंध इन पर चढ़ रही है,
दिखती नहीं, धरती से अब तो,
चमक इनकी लगी है खोने..
आ गगन पर पहुंचा हूँ मैं,
घिसने को तारों के कोने..
तपन सूरज की बढ़ रही है,
चाँद की ठंडक से अड़ रही है,
आग सी फैली है फिजा में,
कैसे कोई जायेगा सोने..
आ गगन पर पहुंचा हूँ मैं,
घिसने को तारों के कोने..
द्रोपदियां यूँ मर रही हैं,
दुश्शासनो से लड़ रही हैं,
क्यों नहीं आता कोई कृष्ण,
कंसों को फिर से मिटाने..?
आ गगन पर पहुंचा हूँ मैं,
घिसने को तारों के कोने..
----मीत----
* फोटो punchstock.com के सोजन्य से.
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12:09 PM
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by मीत
इस गड्तंत्र दिवस पर तू बहुत याद आया, परेड में तेरे कदमों के निशां थे, आवाज थी पर तू नहीं था.. जहाँ भी रहे खुश रहे... love u...
तुम गुजर के जा चुके,
ना गम की गुजरती रात है...
हर तरफ अब ज़िन्दगी में,
दर्द का अलाप है...
मिट नहीं रहा है अबतक,
अनछुआ एहसास है...
मन के वीरान रास्तो पर,
बसी तेरी पदचाप है...
मिटती नहीं है, लाख मिटाऊँ!
अमिट ये तेरी छाप है...
तारों जितना दूर है तू,
फिर भी लगता है पास है...
---मीत
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