आज बहुत दिनों बाद कुछ लिख रहा हूँ, काफी दिनों से व्यस्तताओं के चलते ब्लॉग से दूर रहा ...
एक कोशिश की है दिल के जज्बातों को रचना बनाने की , उम्मीद है आपको पसंद आये ...
कमरे के कौने में धूप का टुकड़ा,
रोशनदान से छन कर आता.
छत पे माँ अचार और पापड सुखाती
और नीचे पार्क में पिता के दोस्तों का जमावड़ा होता.
देखता हूँ ख्वाब ये कब से?
काश उस मोहल्ले में मेरा भी घर होता..
आँगन में बच्चे धमा-चोकड़ी करते
और तुमने साड़ियों को रस्सी पे सुखाया होता..
सांझढले मैं थक कर आता
तुमने मेरे इंतज़ार में पलकों को बिछाया होता,,
देखता हूँ ख्वाब ये कब से?
काश उस मोहल्ले में मेरा भी घर होता..
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
वाह बहुत ही सुन्दर भाव भरे हैं।
बहुत खूबसूरत भाव हैं
सुन्दर शब्द रचना ।
सुंदर अति सुंदर भाव.
रामराम.
बहुत ही खूबसूरत ख्वाब हैं.
दिल के जज़बातों को शब्दों का सुन्दर जामा पहना दिया है आप ने.
बस ,ख्वाब देखना न छोड़ें..न जाने ये ख्वाब किस दम हकीकत बन जाएँ .
बहुत सौम्य सी रचना ।
देर आये, दुरुस्त आये.शुभकामनायें.
बहुत खूबसूरत भाव हैं|धन्यवाद|
Achhi rachna hai
great......very nice.