जब माँ बचपन में,
डांट देती थी..
तुम्ही तो दुलारते थे,
पापा...
जब भागते-भागते में,
खा जाता था ठोकर,
तुम ही तो सँभालते थे,
पापा...
जीवन का हर सुंदर क्षण,
तुम्हारा ही तो,
कर्जदार है!
पापा...
पर पापा...?
आज जब तुमको,
मेरी जरुरत...
तो.. में लाचार हूँ पापा...
तुम्हारे अधूरे सपनों की किरचें,
आँखों में चुभती हैं,
पापा...
डांट देती थी..
तुम्ही तो दुलारते थे,
पापा...
जब भागते-भागते में,
खा जाता था ठोकर,
तुम ही तो सँभालते थे,
पापा...
जीवन का हर सुंदर क्षण,
तुम्हारा ही तो,
कर्जदार है!
पापा...
पर पापा...?
आज जब तुमको,
मेरी जरुरत...
तो.. में लाचार हूँ पापा...
तुम्हारे अधूरे सपनों की किरचें,
आँखों में चुभती हैं,
पापा...
नहीं जानता की कैसे,
इन्हे मैं पूरा करूँगा,
पर तैयार हूँ
पापा...
तुम्हारी आँखों में,
एक पिता के एहसास को,
महसूस करता हूँ मैं,
पापा...
तुमने तो कभी कुछ,
ना कहा मुझसे,
पर मैं हर बात सुनता हूँ
पापा...
मैं तुम्हें सबसे ज्यादा,
प्यार करता हूँ पापा...
---------मीत
तुम्हारी आँखों में,
एक पिता के एहसास को,
महसूस करता हूँ मैं,
पापा...
तुमने तो कभी कुछ,
ना कहा मुझसे,
पर मैं हर बात सुनता हूँ
पापा...
मैं तुम्हें सबसे ज्यादा,
प्यार करता हूँ पापा...
---------मीत
अविनाश वाचस्पति जी ने पिताजी के लिए एक ब्लॉग बनाया है, उन्होंने मुझे उस ब्लॉग पर पिता के लिए कुछ कहने को जोड़ा और मेरे पिता के प्रति मेरे एहसास शब्दों में बह गए...
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