हर सुबह बिस्तर की सिलवटों में...
पलकों से टपके, टूटे से ख्वाब ढूंढता हूँ...
हांथों से खो गए हैं,
कुछ रिश्तों के सिरे थे...
उलझा कब से इनमे,
बेहिसाब ढूंढता हूँ...
ना पा सका हूँ, खुद को,
अब उम्र कटती जाती,
कल से ही हर कहीं पे,
मैं आज ढूंढता हूँ...
होते ही सहर गाती है,
कोयल भी गीत सुरीला,
पर मैं तो मस्जिदों की,
अजां पे झूमता हूँ...
पलकों से टपके, टूटे से ख्वाब ढूंढता हूँ...
तन हो चला है घायल,
काँटों से ये घिरा है,
छूने इन्हें होंठों से,
बेबाक घूमता हूँ...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
दिल के ख़यालात आपने यहाँ पेश किये ...बहुत अच्छे लगे ...
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
पलकों से टपके, टूटे से ख्वाब ढूंढता हूँ......
बहुत खूब .
वाह मीत भाई इतनी दिनों की कमी आज एक बहुत ही सुन्दर रचना पढवा कर पूरी कर दी। अगर ऐसे ही बेहतरीन रचना देते रहो तो दिनों का गेप का कोई गिला नही। सच दिल खुश हो गया।
पलकों से टपके, टूटे से ख्वाब ढूंढता हूँ...तन हो चला है घायल,काँटों से ये घिरा है,छूने इन्हें होंठों से,बेबाक घूमता हूँ...
वाह क्या बात है।
bahot hi khubsurat nazm kahi hai aapne... bahot hi achhe kayalaat ke saath achhi prastuti bhi saath me ... dhero badhaaee sahib...
arsh
वाह ... बहुत बढिया।
बहुत ही सुंदर रचना, आप ने दिल खोल कर रख दिया...
धन्यवाद
पलकों से टपके, टूटे से ख्वाब ढूंढता हूँ...
हांथों से खो गए हैं,
कुछ रिश्तों के सिरे थे...
उलझा कब से इनमे,
बेहिसाब ढूंढता हूँ...
khubsurat abhivyakti hai.
sundar kavita.
ना पा सका हूँ, खुद को,
अब उम्र कटती जाती,
कल से ही हर कहीं पे,
मैं आज ढूंढता हूँ...
" कल रोज आता है मगर आज न जाने कहाँ खो जाता है.....ये पंक्तियाँ जैसे अपना ही सच हो ....खो सा गया मन इनमे.."
Regards
उलझा कब से इनमे,बेहिसाब ढूंढता हूँ.
ना पा सका हूँ, खुद को,
bahut hi khub likh hai meetji... shayad khwaab dekhnewalo ne kabhi na kabhi aissa mahesoos kiya hoga...itna sach bayaan kiya hai aapne
काफी अच्छा लिखा है आपने
हर सुबह बिस्तर की सिलवटों में...
पलकों से टपके, टूटे से ख्वाब ढूंढता हूँ...
हांथों से खो गए हैं,
कुछ रिश्तों के सिरे थे...
उलझा कब से इनमे,
बेहिसाब ढूंढता हूँ...
बहुत ही खूबसूरत लिखा है आपने ...बेहद पसंद आई आपकी यह रचना
बहूत उदासी भरी रचना है मीत जी........
दिल के जज्बातों को उतार कर shashakt रचना है यह
बहूत khoob
पलकों से टपके, टूटे से ख्वाब ढूंढता हूँ..
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ती. शुभकामनाएं.
रामराम.
हांथों से खो गए हैं,
कुछ रिश्तों के सिरे थे...
उलझा कब से इनमे,
बेहिसाब ढूंढता हूँ...
बहुत खूब.. मीत जी.. शानदार अभिव्यक्ति..
behtarin,bahut sunder
... बेहद खूबसूरत।
Bahut badhiya likha sir jee. agar font size thoda badha den to padhne m aasaani hogi.
dil ko chhu jaane waali abhivyakti lekin na jaane kyon adhuri si lagi.