क्योंकि ज़िन्दगी है कम मेरी बाकि...
तो सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
थोड़ी धूप, थोड़ी धुंध और थोड़ी बरसात के लिए
और थोड़ी हौले-हौले से गुजरती...
अपनी साथी रात के लिए
जो हो गया सवेरा,
तो रात भी ढल जायेगी...
नयी सुबह ना जाने?
क्या पैगाम लेकर आयेगी...
कहीं पे मेरा मातम होगा,
कहीं ख़ुशी रूठ जायेगी...
पूरी होगी कहीं रिक्तता,
कहीं कमी रह जायेगी...
मौत ना देगी अब और वक्त जरा भी...
तो सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
थोड़ी रिश्ते, थोड़ी रकीब और थोड़ी राहगीर के लिए...
और थोड़ी मेरे खातिर बह चुके,
पावन से नीर के लिए...
जो हो गया सवेरा
तो नीर भी सूख जायेगा...
प्यास से तरसते इस दिल की,
कौन क्षुब्धा मिटाएगा..?
अब ना होंगे साथ तुम्हारे,
रात हमें ले जायेगी...
अब ना कोई नीर बहाना,
जब याद हमारी आयेगी...
क्या कर पाउँगा अब जो मिला इक लम्हा भी,
बस सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
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तो सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
थोड़ी धूप, थोड़ी धुंध और थोड़ी बरसात के लिए
और थोड़ी हौले-हौले से गुजरती...
अपनी साथी रात के लिए
जो हो गया सवेरा,
तो रात भी ढल जायेगी...
नयी सुबह ना जाने?
क्या पैगाम लेकर आयेगी...
कहीं पे मेरा मातम होगा,
कहीं ख़ुशी रूठ जायेगी...
पूरी होगी कहीं रिक्तता,
कहीं कमी रह जायेगी...
मौत ना देगी अब और वक्त जरा भी...
तो सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
थोड़ी रिश्ते, थोड़ी रकीब और थोड़ी राहगीर के लिए...
और थोड़ी मेरे खातिर बह चुके,
पावन से नीर के लिए...
जो हो गया सवेरा
तो नीर भी सूख जायेगा...
प्यास से तरसते इस दिल की,
कौन क्षुब्धा मिटाएगा..?
अब ना होंगे साथ तुम्हारे,
रात हमें ले जायेगी...
अब ना कोई नीर बहाना,
जब याद हमारी आयेगी...
क्या कर पाउँगा अब जो मिला इक लम्हा भी,
बस सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
जीने की आरजू में, मरते चले गए, अब जो जीने चले हैं... तो मौत आ गयी... |
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हाँ यही तो है जिंदगी ...और इसकी सच्चाई ....आपने बहुत अच्छी कविता लिखी है ...दिल डूब सा गया
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
bahut bahut sundar bhavabhivyakti....Man ko chhooti komal sundar kavita..
क्योंकि ज़िन्दगी है कम मेरी बाकि...
तो सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
थोड़ी धूप, थोड़ी धुंध और थोड़ी बरसात के लिए
और थोड़ी हौले-हौले से गुजरती...
अपनी साथी रात के लिए
"ये पक्तियां बेहद खुबसुरत हैं जो जीने की इच्छा को मुखर करती हैं......जिन्दगी तो हर पल कम होती ही चली जाती है..........और एक पल भी हम अपने लिए जी नहीं पाते........."
regards
मीत भाई काहे इतना दर्द लिखते हो जो पढते वक्त आँखे नम कर जाए। पर सच भी लिख दिया। लगता हम सच से डरते है। वैसे मीत भाई आप इतने दिन में एक रचना लिखते है पर वह एक ही दिल खुश कर जाती है। और पीछे से बजता एक गाना पोस्ट को बहुत ही बेहतरीन बना देता है।
तो सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
थोड़ी धूप, थोड़ी धुंध और थोड़ी बरसात के लिए....... बस सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी..। ( हर शब्द दिल को छू गया)
और आखिर में त्रिवेणी की तो बात ही कुछ और है। वाह जीयो मेरे दोस्त।
... प्रसंशनीय रचना ।
तो सोचा जी लूँ इसे जरा-जरा सी...
थोड़ी रिश्ते, थोड़ी रकीब और थोड़ी राहगीर के लिए...
मीत जी.........जीवन का फलसफा लिखा है आपने.............जिंदगी थोडी होती जाती है पल द पल करने को बहुत कुछ बच जाता है
जीने की आरजू में,
मरते चले गए, अब जो जीने चले हैं...
तो मौत आ गयी...
मीत जी. ये अपने आप में एक पूरी कहानी सी कहती हुईं जबरदस्त पंक्तियाँ हैं .
चित्र चयन उत्तम और सुनाई दे रही है जगजीत सिंह की ग़ज़ल..एक अलग सा माहोल बनती हुई.
ज़िंदगी को गहराई से बताने वाली कविता.. बहुत अच्छा लिखा आपने
आप का ब्लोग मुझे बहुत अच्छा लगा और आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है ! मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है !
आप जिस शैली में लिखते हैं उस का अपना अलग स्थान है ......पानी विच मोती सा चमकता.....बहुत ही भावुक पंक्तियाँ
sochna kya hai?? iss duniya mai aaye hai to kisibhi haal mai jeena jaruri hai.. :) harkadam pe rukavat hogi, manzil samne hoteh ue bhi pana mushkkil hogi..yehi to jeevan hai.. aage badho...
meetji, love this poem of urs...its like straight from heart ...
अब ना होंगे साथ तुम्हारे,
रात हमें ले जायेगी...
अब ना कोई नीर बहाना,
जब याद हमारी आयेगी...
YEH AARJOO JANE KITNE DILJALON NE KI HOGI... LEKIN ITNI UDASI KYON ---MERE DOST!!!
इतनी निराशा भरी बातें?
भई, अब तो दुख के बादलों से बाहर निकलो, देखो दुनिया तुम्हारे स्वागत के लिए बेकरार है।
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जादू की छड़ी चाहिए?
नाज्का रेखाएँ कौन सी बला हैं?
meet ji
is rachna ko padhkar to kahin kho gaya bhai .. kya likha hai waah waah .. dil se badhai sweekar karen ..
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com