लोकसभा चुनाव आनेवाले हैं और इसके लिए सभी राजनितिक दलों ने अपने अपने सब्जबाग मतदाताओं को दिखाने शुरू कर दिए हैं...
वैसे तो आप भी सोचते होंगे की दोगले और भृष्ट नेताओं के खिलाफ कुछ ऐसी वोटिंग हो जो उनके खिलाफ जाये... क्यों मजा आ जायेगा ना ?लेकिन हमारे नेतागण नहीं चाहते की ऐसा मतलब उनके खिलाफ कोई वोटिंग कर सके इसलिए केंद्र सरकार ने पिछले ५ सालों से चली आ रही याचिका 'पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज' (इस संस्था ने याचिका में मतदाताओं को उम्मीदवारों को नकारने का हक दिए जाने की मांग की है।) जो की अब तक लंबित है पर अभी तक कोई सुनवाई नहीं होने दी है...
इस बारे में केंद्र सरकार का कहना है की यह याचिका अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल की गई है, लेकिन इसमें उठाया गया मुद्दा मौलिक अधिकार के हनन का नहीं है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई नहीं कर सकता है। मत देने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि नागरिकों को प्राप्त विधायी अधिकार है। वैसे भी याचिका स्वीकार किए जाने लायक नहीं है, क्योंकि इसमें की गई मांग अव्यावहारिक है।
वैसे जो हक़ यह संस्था मांग रही है उसके बारे में केंद्र सरकार का कहना है की इसमें व्यवस्था है कि यदि कोई व्यक्ति अपना मत नहीं देना चाहता है तो वह चुनाव अधिकारी के पास जाकर अपनी इच्छा बता सकता है और चुनाव अधिकारी उसकी राय को एक रजिस्टर में दर्ज कर हस्ताक्षर कराता है। अनुच्छेद 128 के तहत चुनाव अधिकारी उस राय को गोपनीय रखने के लिए बाध्य है। अन्यथा उसे तीन महीने तक की कैद हो सकती है। उम्मीदवार को नकारने की राय चुनाव अधिकारी को बताए जाने से मत की गोपनीयता के अधिकार का हनन होता है।
याचिका में मांग की गई है कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे मतदाता किसी भी उम्मीदवार के पसंद न आने की स्थिति में 'उपरोक्त में कोई नहीं' का बटन दबा सके। मतों की गिनती करते वक्त इन वोटों को भी गिना जाए और अगर नकारात्मक वोटों का प्रतिशत ज्यादा निकले तो वह चुनाव रद कर दिया जाए।
इस याचिका में ज्यादा कुछ नहीं केवल यही माँगा गया है की यदि कोई उम्मीदवार किसी और क्षेत्र से आकर हमारे क्षेत्र से चुनाव लड़ रहा है, या उसका पिछला रिकॉर्ड ख़राब है यानि वह आपराधिक रिकॉर्ड रखता है और हम जानते हैं और हमें वह पसंद नहीं तो हम उसके खिलाफ नेगेटिव वोटिंग कर सकते हैं... इसमें बुरा क्या है...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
वैसे तो आप भी सोचते होंगे की दोगले और भृष्ट नेताओं के खिलाफ कुछ ऐसी वोटिंग हो जो उनके खिलाफ जाये... क्यों मजा आ जायेगा ना ?लेकिन हमारे नेतागण नहीं चाहते की ऐसा मतलब उनके खिलाफ कोई वोटिंग कर सके इसलिए केंद्र सरकार ने पिछले ५ सालों से चली आ रही याचिका 'पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज' (इस संस्था ने याचिका में मतदाताओं को उम्मीदवारों को नकारने का हक दिए जाने की मांग की है।) जो की अब तक लंबित है पर अभी तक कोई सुनवाई नहीं होने दी है...
इस बारे में केंद्र सरकार का कहना है की यह याचिका अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल की गई है, लेकिन इसमें उठाया गया मुद्दा मौलिक अधिकार के हनन का नहीं है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई नहीं कर सकता है। मत देने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं, बल्कि नागरिकों को प्राप्त विधायी अधिकार है। वैसे भी याचिका स्वीकार किए जाने लायक नहीं है, क्योंकि इसमें की गई मांग अव्यावहारिक है।
वैसे जो हक़ यह संस्था मांग रही है उसके बारे में केंद्र सरकार का कहना है की इसमें व्यवस्था है कि यदि कोई व्यक्ति अपना मत नहीं देना चाहता है तो वह चुनाव अधिकारी के पास जाकर अपनी इच्छा बता सकता है और चुनाव अधिकारी उसकी राय को एक रजिस्टर में दर्ज कर हस्ताक्षर कराता है। अनुच्छेद 128 के तहत चुनाव अधिकारी उस राय को गोपनीय रखने के लिए बाध्य है। अन्यथा उसे तीन महीने तक की कैद हो सकती है। उम्मीदवार को नकारने की राय चुनाव अधिकारी को बताए जाने से मत की गोपनीयता के अधिकार का हनन होता है।
आप ही सोचिये जिस तरह से नेता लोग राजनीती का गन्दा खेल खेलते हैं. कुछ न कुछ तो ऐसा होना चाहिए की जनता इन्हें इनकी औकात बता सके.. पर केंद्र सरकार नहीं चाहती की ऐसा हो.. क्योंकि उसके सिपहसालारों को मुह की खानी पड़ जायेगी.. इस बात पर सोचें... |
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याचिका में मांग की गई है कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन में ऐसी व्यवस्था की जाए जिससे मतदाता किसी भी उम्मीदवार के पसंद न आने की स्थिति में 'उपरोक्त में कोई नहीं' का बटन दबा सके। मतों की गिनती करते वक्त इन वोटों को भी गिना जाए और अगर नकारात्मक वोटों का प्रतिशत ज्यादा निकले तो वह चुनाव रद कर दिया जाए।
इस याचिका में ज्यादा कुछ नहीं केवल यही माँगा गया है की यदि कोई उम्मीदवार किसी और क्षेत्र से आकर हमारे क्षेत्र से चुनाव लड़ रहा है, या उसका पिछला रिकॉर्ड ख़राब है यानि वह आपराधिक रिकॉर्ड रखता है और हम जानते हैं और हमें वह पसंद नहीं तो हम उसके खिलाफ नेगेटिव वोटिंग कर सकते हैं... इसमें बुरा क्या है...
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बात तो सही कह रहे है मीत भाई। वैसे कहीं सुना था फार्म नम्बर 17 का प्रयोग कर सकते है। वो क्या है? खैर एक वाजिब सवाल उठाया है इस पोस्ट में आपने।
सही बात मीत......पर कौन सुनेगा इस बात को.........ये नाता लोग ही इस देश के रजा हैं आज के समय में और कोई परिवर्तन आएगा..........उम्मीद कम है
नेताओं पर दबाव डालने के लिए मतदाताओं को ही पहल करना होगी । राजनीतिक दल खुद होकर कभी बदलाव नहीं चाहेंगे ,उन्हें मजबूर किया जा सकता है वोट नहीं करने का भय दिखाकर । चुनाव आयोग ने हमें मौका दिया है कि हम मतदान केन्द्र पर अपने मत का उपयोग नहीं करने की सूचना दर्ज़ करायें । मेरा मानना है कि हमें इस व्यवस्था का बड़े पैमाने पर फ़ायदा उठाना चाहिए । आप से गुज़ारिश है कि इस मुहिम में लोगों को शामिल करें ।
कितने चुनाव रद्द करेंगे हमलोग ... उसका खर्च भी तो हम जनता को अपनी जेब से ही देना पडता है न ।
मीत भाई आप की राय बहुत उचित है, ओर सरिता जी की टिपण्णी भी बहुत कुछ कहती है, यह सब तो हमे ही करना होगा... अगर सभी नागरिक एक हो जाये ओर कोई वोट ना डाले तो भाड मै जाये यह चोर उच्चके, जो सिर्फ़ हमारे टुकडो को पा कर हमे ही दांत दिखाते है.
ओर यह सरकार कहा हमारी है, ना प्रधान मन्त्री हम ने चुना, ओर नाही इस सरकार को...
धन्यवाद
आपके विचार जायज है मगर यहाँ राजनीति मे सबकी अपनी ढपली और अपना राग है....कौन ध्यान देगा....लगता तो नहीं..
Regards
नेगेटिव वोटिंग का अधिकार मिलना ही चाहिए।
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तस्लीम
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन
बिल्कुल सही मीत जी, वक्त आ चुका है जब हमें लोकतंत्र की सच्ची अवधारणा के बारे में विचार करना ही चाहिए..
Bilkul sahmat hoon aapki baat se.