तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

फर्ज

सागर मंथन में एक बार कभी
विषपान किया था शिव तुमने,
जीवन मंथन में रोजाना ही
गरल पिया है मानव ने
हम भी भंग की खा बूटी
सच से आंख चुरा सकते थे
पीकर एक बार ही विष का प्याला
फर्ज से मुक्ति पा सकते थे!
कैद से इस निर्गुण शरीर की,
आत्मा को अपनी छुडा सकते थे,
होकर के दूर इस पापी जग से,
दूजी दुनिया में जा सकते थे!
लेकिन फिर ऐसा करने से,
मेरी आत्मा ने रोका मुझको मोह,
माया, लोभ, क्रोध और लालच,
इन सबकी भट्टी में झोंका हमको!
बहुत की कोशिश हमने शिव जी,
अपना फर्ज निभाने को!
सुलग गए हम,
झुलस गए हम,
माँ बाप का सपना पाने को...

ये मेरी पुरानी पोस्ट है... आज फिर कुछ ऐसा हुआ जो खुद को लाचार पाया... तो ये पोस्ट फिर से पढ़ी और याद कर ली... और थोड़ी शिव से शिकायत कर ली...आप भी ऐसे दौर से गुजरे तो होंगे...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
12 Responses
  1. आप उन कलाकारों में से जो अपनी रचना को आग में खूब तपाते है और जब वह सोना बन जाती है तब उसे यहाँ लगाते है। सच यह एक बेहतरीन रचना है।
    बहुत की कोशिश हमने शिव जी,
    अपना फर्ज निभाने को!
    सुलग गए हम,
    झुलस गए हम,
    माँ बाप का सपना पाने को

    क्या कहूँ इन सपनों के आगे कहने को कुछ नही बचता।


  2. ब हुत की कोशिश हमने शिव जी,
    अपना फर्ज निभाने को!
    सुलग गए हम,
    झुलस गए हम,
    माँ बाप का सपना पाने को...

    बहुत सुन्दर बहुत खूब


  3. बहुत ही अच्‍छा लिखा है मीत जी आपने बधाईयां


  4. क्या कहू दोस्त नहीं मालूम तुम किस दौर से गुजर रहे हो.....पर जैसे भी महसूस करो वैसे लिखो....


  5. जीवन की हकीकत, यथार्थ का सच कठिन से कठिन दौर से भी निकाल देता है ..........
    शिव की शक्ति शिव जैसा करने को प्रेरित भी करती है और रोकती भी है....
    मन की उदासी को निकाले और अपनी आत्मा से हलाहल पी कर शिव बनें
    आपकी कविता बहुत सुन्दर है


  6. मीत हमे कविताओ की इतनी समझ नही लेकिन आप की यह कविता बहुत ही अच्छी लगी.
    धन्यवाद


  7. seema gupta Says:

    बहुत की कोशिश हमने शिव जी,
    अपना फर्ज निभाने को!
    सुलग गए हम,
    झुलस गए हम,
    माँ बाप का सपना पाने को...
    " insaan bhagwan se hi dil khol kr shikayat kr sta hai na.....bhagan aapki bhi jrur sunegen.."

    Regards


  8. बहुत अच्छा लिखा है आपने


  9. मीत जी, बहुत खूब शिकायत है।


  10. अच्छी लगी रचना मीत....कैसे हो? बहुर दिनों से आ नहीं पाया था इस तरफ....


  11. आजके युवाओं की मनोदशा का बहुत ही सार्थक वर्णन।


  12. khud ko lachar to humne bhi kai baar paya hai aur tab apno ka sahara liya hai..fir hbi agar sahara kam pad jaaye to bhawaan ke sahare chale jaate hai...aap ka shukriya ki hame aap ki purnai ye post padhne ko mili...


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