वैसे तो मुक्तक क्या है, उसकी परिभाषा क्या है.. नहीं जानता... बस लिखने को मन किया तो मन के भावों को ही शब्दों में उडेल दिया... उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आये... गलतियाँ हों तो जानने की इच्छा रखता हूँ, ताकि सुधार सकूँ...
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© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
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ज़िन्दगी की हर रात को स्वर दिया है
मन-आँगन को गीतों से भर लिया है
गुनगुना रहा हूँ मैं अब प्रेम-गीत
प्रेम ने मन में मेरे घर किया है.
मन-आँगन को गीतों से भर लिया है
गुनगुना रहा हूँ मैं अब प्रेम-गीत
प्रेम ने मन में मेरे घर किया है.
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ना मालूम किस ओर जा रहा हूँ
कौन सा सुख मैं पा रहा हूँ
क्या मैं ही आज का इंसान हूँ
क्या मैं ही आज का इंसान हूँ
नोच कर इंसानियत को खा रहा हूँ.
3
कलम मेरी फिर डगमगाई है
अपने लिए एक पड़ाव ले आई है
लिखना है कुछ, पर लिखता हूँ कुछ
आज फिर से उंगलियाँ थरथराई हैं.
अपने लिए एक पड़ाव ले आई है
लिखना है कुछ, पर लिखता हूँ कुछ
आज फिर से उंगलियाँ थरथराई हैं.
4
प्रीत की डोर में बाँध दिया मुझे
रिश्तों के सलीब पे टांग दिया मुझे
पास सिर्फ एक तन्हाई है
क्यों ऐसा जीवन वीरान दिया मुझे.
रिश्तों के सलीब पे टांग दिया मुझे
पास सिर्फ एक तन्हाई है
क्यों ऐसा जीवन वीरान दिया मुझे.
5
दूर कहीं अब चल पड़ा है मन
नए सफ़र पे निकल पड़ा है मन
टूट कर कहीं बिखर ना जाये
आप अपने से लड़ पड़ा है मन.
"मीत"
नए सफ़र पे निकल पड़ा है मन
टूट कर कहीं बिखर ना जाये
आप अपने से लड़ पड़ा है मन.
"मीत"
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
Bhai Jaan Mujhe bahut pasand aaye aapke ye मुक्तक
खैर हमें भी नही पता कि मुक्तक क्या होते है पर आपका लिखा वाकई हमें पसंद आया। और खुशी भी हुई अब पूछिए खुशी किस बात की हुई तो जो जरा इसे
ज़िन्दगी की हर रात को स्वर दिया है
मन-आँगन को गीतों से भर लिया है
गुनगुना रहा हूँ मैं अब प्रेम-गीत
प्रेम ने मन में मेरे घर किया है.
वाह क्या बात है।:)
kya baat hai . bahut sundar.
ना मालूम किस ओर जा रहा हूँ
कौन सा सुख मैं पा रहा हूँ
क्या मैं ही आज का इंसान हूँ
नोच कर इंसानियत को खा रहा हूँ.
.........
वाह वाह वाह......
मन के भावों का शब्दों में यह बहाव बस मन बहा ले जाता है....
सभी रचनाएँ मनमोहक हैं,कोई किसी से कमतर नहीं....और उनके साथ जो चित्र आपने प्रेषित किये हैं,वे भी अति मन भावन हैं..
चलिये भरोसा हो गया कि इन्सानियत अभी ज़िन्दा है,
कम से कम एक इन्सान तो खुद से सवाल कर रहा है,
यानि इन्सानियत को नोच खाने का एहसास, पश्चाताप अभी मौज़ूद है !
ना मालूम किस ओर जा रहा हूँ
कौन सा सुख मैं पा रहा हूँ
क्या मैं ही आज का इंसान हूँ
नोच कर इंसानियत को खा रहा हूँ.
बड़ी ही उम्दा सोच के साथ लिखी गई बेहतरीन रचनाएँ...
पढकर आनंद आ गया
वाह बहुत सुंदर लिखा आप ने धन्यवाद
सभी मुक्तक सुन्दर हैं ।
माफ़ करना मीत आप की पोस्ट पर देर से पहुंची हूँ..
यह पोस्ट आप की अब तक की सबसे बेहतरीन पोस्ट लग रही है.
और अभी इस वक़्त जो टेम्प्लेट का स्वरूप है बहुत ही व्यवस्थित और अच्छा है.
-अब मुक्तक की बात,
सभी रचनाएँ मुकम्मल हैं.
भाव में पूर्ण अपनी बात कहने में सक्षम और अभिव्यक्ति में सफल.
सभी रंग शामिल किये हैं आप ने इस लिए इस पोस्ट को बेहतरीन कहा है.
-चित्र चयन विषयानुसार एक दम सही किया है.इसकेलिए भी शाबाशी है.:)
-मुझे व्यक्तिगत तौर पर दूसरे और चौथी रचनाएँ गागर में सागर जैसी लगी हैं.
शुभकामनाये,
@meet ...main ne aap ka sujhav note kar liye hai..jaldi hi is vishay par post likhungi.
shukriya.
ना मालूम किस ओर जा रहा हूँ
कौन सा सुख मैं पा रहा हूँ
क्या मैं ही आज का इंसान हूँ
नोच कर इंसानियत को खा रहा हूँ.
Bahut khub likha hai.Badhai.
माफी चाहूँगा, आज आपकी रचना पर कोई कमेन्ट नहीं, सिर्फ एक निवेदन करने आया हूँ. आशा है, हालात को समझेंगे. ब्लागिंग को बचाने के लिए कृपया इस मुहिम में सहयोग दें.
क्या ब्लागिंग को बचाने के लिए कानून का सहारा लेना होगा?
मन इसलिये करता है मन मानी
बहुत ही मुक्त भाव से मुक्तको की रचना हुई है। मुक्त कंठ से प्रशंसा कर रहा हूं।
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दीपावली पर्व की आपको एवं समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं वैभव लक्ष्मी आप सभी पर कृपा बरसाएं। लक्ष्मी माता अपना आर्शिवाद बरसाएं
झिलमिलाते दीपो की आभा से प्रकाशित , ये दीपावली आप सभी के घर में धन धान्य सुख समृद्धि और इश्वर के अनंत आर्शीवाद लेकर आये. इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली की हार्दिक शुभकामनाए.."
regards
लिखिये, वो क्या है बाद में देखा जायेगा।
aapki rachna to bahut hi sundar hai..hamesha ki tarah...jane kaise aap itana gahara soch lete hai...likhte rahe.