तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

सरहद पे वो मौत से जूझता है...

सरहद पे वो मौत से जूझता है,
उसकी मुहब्बत का दुप्पटा,
उसकी यादों के आंसू पोंछता है,
माँ की आँखों में बिछड़ने का
दर्द अब भी ताजा है.
टूटने को तैयार,
एक एक वादा है...
पिता रोज उसके गर्व में,
सीना ठोकता है...
सरहद पे वो मौत से जूझता है...


© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!

मैं पंख लगा उड़ जाऊंगा...

कहता है मुझसे,
मैं ना फिर आऊंगा...
तू... जीले पल... पल...
रो के, हंस के
मैं पंख लगा उड़ जाऊंगा...
यों जागा सा जो सोता है,
इसलिए तू मुझको खोता है?
पलभर में ही मिट जाता है,
यहाँ जो मुझसे टकराता है
भला कौन मुझे है बाँध सका,
मैं तेरे हाथ ना आऊंगा...
तू... जीले पल... पल...
रो के, हंस के
मैं पंख लगा उड़ जाऊंगा...
आ दौड़ के देखें संग-संग हम,
जीवन के संकरीले पथ पर
गिर जायेंगे सफ़र के लम्हे,
राहों में तेरी कट-कट कर
जो पाया है तूने अबतक,
वो साथ अपने ले जाऊंगा
तू... जीले पल... पल...
रो के, हंस के
मैं पंख लगा उड़ जाऊंगा...

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इस महीने की ८ तारीख को मेरे ब्लॉग का एक वर्ष पूरा हो गया... वक्त कब पंख लगा कर उड़ गया पता ही नहीं चला... इस एक वर्ष में मुझे आप सब की सराहना, प्रेम और बहुत कुछ सीखने को मिला... उम्मीद करता हूँ की आगे भी मिलता रहेगा.. मेरे ब्लॉग की पहली वर्षगाँठ पर आप सब को बधाई... ये पोस्ट देरी से पोस्ट कर पाया.. वजह वही है... जिस पर यह रचना बनी है...वक्त...

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लिखने को तो बहुत है पर
कमबख्त ये साथ नहीं देता..
दौड़ाता है मुझे, आगे निकल जाता है...

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कल रात फलक का चाँद फुटपाथ पर था...

देर तक वो मुझसे बात करता रहा...
पोंछने को बार बार पसीना,
अपनी हथेलियों को चेहरे पे मलता रहा,
पसीने से उसका भी बदन, तरबतर था...
हाँ! कल रात फलक का चाँद फुटपाथ पर था...
बोला यार...
"यहाँ तो हवा बहुत गरम है,
तुम्हारे बिछोने में अग्नि की तपन है,
किस तरह तुम इस पे, लेटते होगे..?
क्या रोटियां भी इसी पे सेकते होगे..?
सोचता था, मैं की धरा बहन तो बेदाग़ है...
पर इसके सीने में तो सूरज सी आग है...
उसका हर लफ्ज, मंद-ऐ-फ़िक्र था..."
कल रात फलक का चाँद फुटपाथ पर था...
मैंने कहा...
"ये हवा मेरी सांसों से निकली है,
बिछोने में, माँ के हाथो की गर्मी है,
लेटते ही इस पे नींद आ जाती है,
कितनी ही भूख हो, पल में मिट जाती है,
तुमने सही सोचा धरा में ना कोई दाग है,
जिसे तुम आग कहते हो,
वो मेरे लिए लोरियों का राग है,
मेरी बात सुन...
जा बैठा वो फिर गगन में फुर्र फुर्र सा..."
हाँ! कल रात फलक का चाँद फुटपाथ पर था...

रात फिर करवटों में जायेगी
भीगे बदन से नींद ना आयेगी
आज फिर हवा बहुत गरम है...



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