तोड़ के सूरज का टुकड़ा, ओप में ले आऊं मैं! हो जलन हांथों में, तो क्या! कुछ अँधेरा कम तो हो. -मीत

A latter to My BRO...


भाई अब मेरे सेल पे तुम्हारा नंबर नही दिखता
जन्मदिन पे तीज त्यौहार पे मुझे तुम्हारी आवाज़ नही सुनाई देती..

      हाँ दिल से तुम्हारी आवाज आती है..
तुम्हारी वो दिल को ताजगी से भर देने वाली हंसी.. कानो में गूंजती रहती है..
और मैं अपने कंधो पर तुम्हारे हाथो के अहसास को भी महसूस करता हूँ..

      भाई तुम्हारे जाने के बाद ज़िन्दगी में बहुत कुछ बदल गया है..
पर तुम तो बीच राह में मुझे छोड़ चले गए..
मैं अपने दिल की बातें किस से बांटू.. तुम्हारी तरह समझाने वाला कोई नहीं है अब.. 

भाई तुम बिन रहने की आदत नहीं डाल पा रहा हूँ. हर मौके पे तुम्हारी कमी आँखों में नमी ले आती है.. पर मैं जानता हूँ की तुम मेरे पास ही हो..



"तेरे बिन जब आई दिवाली!!
दीप नहीं दिल जले हैं खाली!!!"


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सूने घर -आंगन


मैं लेटा हूँ अंतिमशय्या पे..
आंगन में विलाप है..
आंसू हैं.. आहें हैं..
चीखें हैं, चीत्कार है..
अच्छा लगता है आज घर के आंगन में,
जमा हुआ पूरा परिवार है..
लोग आ रहे हैं, लोग जा रहे हैं..
मेरे अपनों को दिलासा बंधा रहे हैं..
वक्त अब बढ़ चला है..
रथ मेरा सज चुका है..
एक राह खत्म हो गयी...
एक सफ़र शुरू हुआ है..
अलविदा कह के मुझको सब चले जायेंगे..
मेरे घर-आंगन फिर से सूने हो जायेंगे..

मीत

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