महाराष्ट्र के एक छोटे से जिले में बसा है शिरडी गाँव जहाँ साईं बाबा ने बहुत दिनों तक वास किया था,
और अपने भक्तों व जग का कल्याण करते हुए वही समाधी भी ले ली थी.
कहते हैं कोई चाहे न चाहे बाबा की अगर मर्जी हुयी तो वो किसी को भी वहां बुला लेते हैं,
जैसे मुझे बुलाया.
मैं आपको अपनी यात्रा के बारे में बताता हूँ,
भविष्य में कभी आपका जाना हुआ तो शायद मेरे ब्लॉग से आपको कुछ जानकारी मिल जाये,
क्योंकि मैं भी वहां पहली बार गया था.
तो ज्यादा जानकारी नहीं थी.
हम दो लोग थे एक मैं और साथ में मेरा छोटा भाई.
हमने ट्रेन का सफ़र करना तय किया.
रस्ते में ढेर सारे स्टेशन पड़े-
मथुरा,
आगरा,
झाँसी,
भोपाल,
चालीस गाँव और अंत में हमारी ट्रेन पहुंची कोपरगाँव यह वह स्टेशन है जहाँ से आप आधे घन्टे के सफ़र में शिरडी जा सकते हैं.
श्रधालुओं को ले जाने के लिए यहाँ से ऑटो चलते हैं जो शिरडी तक ले जाने के लिए २० रुपये प्रति सवारी लेते हैं.
जब हम दिल्ली से चले थे तो गर्मी ने हमारा बुरा हाल कर रखा था लेकिन झाँसी पहुँचने के बाद बाबा की कृपा से तेज ठंडी हवाओं के साथ बारिश शुरू हो गयी और मौसम एकदम खिल गया और हमारा सफ़र बेहद खूबसूरत हो गया.
तेज बरसात के साथ सुंदर-
सुंदर हरेभरे पेड़ों को ट्रेनों से देखना मन को बहुत बता है और साथ ही ऊँचे नीचे पहाड़.
जब पहाडो के बीच से होती हुयी ट्रेन निकलती है तो वो नजारा देखने लायक होता है.
आप अपनी ट्रेन का इंजन अपनी ही खिड़की से देख सकते हैं.
इस रस्ते में कई सुरंगे भी पड़ती हैं,
जिनसे गुजरते समय लोग बहुत शोर मचाते हैं.
ट्रेन से दिल्ली से कोपरगाँव तक का सफ़र करने में हमें लगभग २४ घंटे लगे। हम १३ को सुबह १० बजे ट्रेन में बैठे और १४ तारीख को ९ बजे ट्रेन ने हूमें कोपरगाँव स्टेशन पर उतार दिया.
कोपरगाँव उतरने के बाद हमें स्टेशन के बाहर से ही ऑटो मिले जो हमें शिरडी तक ले कर गए। ऑटो में बैठे हुए मैं यही सोच रहा था की शिरडी कैसा होगा? जैसा शिरडी धारावाहिकों में दिखाते हैं कुछ उसी तरह की तस्वीर मेरे मन में भी बनी हुयी थी, पर जब शिरडी पहुंचा तो वहां का नजारा अलग ही था. यह गाँव से एक शहर में तब्दील हो चूका है. यहाँ श्रधालुओं के लिए हर तरह की सुविधाएँ मौजूद हैं। लगभग आधे-पौने घंटे में ऑटो ने हमने शिरडी में उतार दिया. यहाँ बाबा के समाधी मंदिर से कुछ ही दुरी पर भक्तों के लिए एक बहुत बड़ी धर्मशाला बनी है.
जिसके बाहर ही हमें ऑटो ने उतारा. यहाँ उतरने के बाद हम धर्मशाला में गए लेकिन भीड़ ज्यादा होने के कारण कमरा मिलना हमें मुश्किल लग रहा था. क्योंकि छुट्टियाँ होने के कारण श्रधालुओं की बहुत लम्बी लाइन लगी थी. हमने होटल में कमरा लेना ठीक समझा. एक चीज आप लोगो से मैं जरुर बांटना चाहूँगा. इस पवित्र शिरडी गाँव में वहां के लोगो ने महंगाई बहुत ज्यादा की हुयी है। हमें दो दिन के लिए कमरा चाहिए था। पहले तो हमें वहां होटल में कमरा ही नहीं मिला और जब एक होटल में मिला तो हमने होटल वाले से पुछा तो वो bola की एक दिन का किराया १६०० रूपये है और कल १५ अगस्त है तो डबल किराया लगेगा. १५ अगस्त पे रियायत होनी चाहिए की किराया डबल॥? आखिर मज़बूरी में हमें कमरा लेना पड़ा लेकिन डबल किराये वाले को हमने माना कर दिया। यहाँ के रहने वाले लोग भी पैसे लेकर कमरा देते हैं।
हम इसके बाद नहा-धोकर बाबा की समाधी-दर्शन के लिए निकले. यहाँ प्रसाद की दुकान वालों ने अपने एजेंट छोड़ रखे हैं. वो हमारे पास आये और बोले की आओ साब दर्शन करते हैं. मैंने कहा की वैसे हमें दर्शन नहीं होंगे क्या? तो वो बोला की साब अगर आप हमारी दुकान से प्रसाद लोगे तो आपको हम डायरेक्ट आरती में एंट्री कराएगा. आरती की वजह से अभी लाइन रुकी है. हमारा आदमी आपको ले के जायेगा और सीधा समाधी पे एंट्री कराएगा. मेरे मन में लालच आ गया, मैंने सोचा की ये प्रसाद जरुर महंगा देगा लेकिन आरती तो करने के लिए मिल जायेगी. उसने मेरे अंदाज़ के मुताबिक ही प्रसाद की बहुत महंगी थैली बनाई. पर मैंने सोचा कोई बात नहीं आरती तो मिलेगी. हालाँकि बाबा को परसाद, चादर, या किसी चीज का चढावा नहीं चाहिए आप एक फूल लेकर भी उनके पास जायेंगे तो वो ही उनके लिए काफी होता है.
मुझे अपनी गलती का एहसास जब हुआ अब उस प्रसाद वाले ने मुझे उसी लाइन में लगा दिया जहाँ सब जा रहे थे. मैं समझ गया की बाबा जब चाहेंगे तभी कोई आरती में पहुँच सकता है, नहीं तो नहीं. अगर आप कभी जाएँ तो उन प्रसाद वालों से जरुर सावधान रहे ये २-२ हज़ार रुपये की प्रसाद की थालियाँ बना कर दे देते हैं, और श्रद्धालू ले भी लेते हैं. खैर हमें यहाँ बहुत अच्छे दर्शन हुए. इसके बाद हम समधी मंदिर से बहार निकले वहां बाबा का पूरा शिरडी परिसर है.
इसके बाद हमने इस परिसर में बाबा का म्यूज़ियम देखा जहाँ साईं बाबा का कुरता, चिलम, उनका भिक्षा लेने का पात्र, पालकी, जिसमे बाबा ने खिचडी बनाई थी वो ताम्बे की हंडी, बाबा का नहाने का पत्थर और बहुत सी चीजे हैं. म्यूज़ियम के बाद हमने बाबा की उडी प्राप्त की, जिसके लिए काफी लम्बी लाइन लगी थी. फिर इसी परिसर में हमने बाबा का लेंडी बैग देखा जहाँ बाबा पेड़-पौधों में पानी लगते थे. यहाँ वो कुआँ भी है जिसमे से बाबा पानी भरते थे.
इसके आलावा यहाँ श्रधालुओं के लिए रेलवे आरक्षण, रक्तदान, चिकित्सालय, बैंक ATM भी है. आपको एक खास बात बता दूं की इस परिसर में कैमरा या मोबाइल ले जाना सख्त माना है. इसलिए आप कैमरा या मोबाइल अपने होटल में ही छोड़ कर जाएँ. हमें दर्शन के दौरान ही एक कूपन दिया गया, जिसके द्वारा हम बाबा के प्रसादालय में खाना खा सकते थे. समाधी परिसर में बाबा के साथ रहने वाले अन्य लोगो की भी समाधियाँ बनी हुयी हैं.
इस पूरे परिसर को घुमने के बाद हम द्वारिकमाई गए, जहाँ बाबा धुनी रमाते थे, यहाँ बाबा का चूल्हा और वो पत्थर भी है जिस पर बाबा बैठते थे, जिस पर बैठे हुए ही उनकी हर जगह तस्वीर और मूर्तियाँ हैं. यहाँ बाबा ने पानी के दिए भी जलाये थे, यहाँ भक्तों को बाबा के दिए का तेल भी मिलता है, जिसे दर्द में लगाने से तुंरत आराम हो जाता है.
इसके बाद हमने चावडी और उसी के सामने अब्दुल बाबा की झोपणी देखि.
उसके बाद थोडी ही दूर पर लक्ष्मीबाई का घर है जिन्हें बाबा ने ९ सिक्के दिए थे, शीशे में जड़े यह सिक्के आज भी वैसे के वैसे साईं का एहसास लिए हुए रखे हैं. यही एक कुआँ भी है.
फिर हम बाबा के प्रसादालय में गए यहाँ का नजारा इतना सुंदर था की वहां से कहीं और जाने का मन ही नहीं कर रहा था. जिन लोगो को कमरा या धरमशाला न मिले वो यहाँ भी रात बिता सकते हैं. यह इतनी बड़ी जगह में बना हुआ है की लाखों लोग इसमें समां जाएँ, यहाँ छतों पर सोलर सिस्टम लगे हैं उसी से खाना पकता है. इस प्रसादालय २ मंजिलों पर एक बार में लगभग ८००० लोग एक साथ खाना खा सकते हैं. यहाँ खिचडी बनाते हुए बाबा की बहुत बड़ी मूर्ति बनी हुयी है. यहाँ फोटो खींचने की कोई मनाही नहीं है. आप जितने चाहें खिंच सकते हैं.
अंत में हमने खंडोबा मंदिर जहाँ बाबा पहली बार अब्दुल बाबा की लड़के की बारात में आये थे वहां गए.
इस यात्रा में मेरा मन प्रसन्न हो गया. उम्मीद करता हूँ बाबा फिर से मुझे वहां बुलाएँ.
ॐ साईं राम
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