तुम तो कहतीं थी,
मेरे द्वार खुले हैं हरपल
तुम्हारे लिए!
पर वहाँ एक ताला था।
मैं सीढियों पर बैठा,
करता रहा तुम्हारा इंतज़ार
१ घंटा दो घंटे विवश!!
आखिर मैंने खिड़की से झाँका...
सुखा गुलाब का फूल,
एक किताब और
मोर पंख....
फिर हवा का एक तेज़ झोंखा आया
और....
कुछ पन्ने फड़फड़ाये...
एक पन्ना उड़ चला,
कुछ पुराना सा,
परिचित सा, पीला-पीला सा पन्ना....
मैंने सिर्फ अपना नाम पढा,
मुस्कुराया...
ताले पर नज़र डाली...
...और गुनगुनाता हुआ...
चल पड़ा...!!!
तुमसे मिला अच्छा लगा...
एक मुलाकात और जुड़ गयी...
यादों की...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
मेरे द्वार खुले हैं हरपल
तुम्हारे लिए!
पर वहाँ एक ताला था।
मैं सीढियों पर बैठा,
करता रहा तुम्हारा इंतज़ार
१ घंटा दो घंटे विवश!!
आखिर मैंने खिड़की से झाँका...
सुखा गुलाब का फूल,
एक किताब और
मोर पंख....
फिर हवा का एक तेज़ झोंखा आया
और....
कुछ पन्ने फड़फड़ाये...
एक पन्ना उड़ चला,
कुछ पुराना सा,
परिचित सा, पीला-पीला सा पन्ना....
मैंने सिर्फ अपना नाम पढा,
मुस्कुराया...
ताले पर नज़र डाली...
...और गुनगुनाता हुआ...
चल पड़ा...!!!
तुमसे मिला अच्छा लगा...
एक मुलाकात और जुड़ गयी...
यादों की...
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वाह भाई जान वाह....ये इश्क भी क्या खूब है...आपका तरीका हमे भाया
वाह भाई वाह क्या कहने। सेम्पल से शब्दों की रवानगी देखते ही बन रही है। सुन्दर रचना फूल सी। पर दोस्त ये आजतक समझ नही आया कि प्यार करने वालों की किस्मत पर हमेशा ताला क्यों लगा होता है।
जज्बात का दरिया कोई आपकी कविता में देखे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत नायाब लगा जी यह आईडिया भी.
रामराम.
तुमसे मिला अच्छा लगा...
एक मुलाकात और जुड़ गयी...
यादों की...
बहुत खुब मीत जी जबाब नही, बहुत सुंदर ढंग से आप ने मन की बात को कविता मै पिरोया है.
धन्यवाद
Bahoot khoob........... nazooki se likhi huye rachnaa....... sach mein ishq jo n karaaye kam hai
कविता में आहत मन की भावुकता और विवशता का खूब ताल मेल है !
कितनी गहरी चोट लगी होगी दिल पर इस 'मुलाक़ात 'के बाद!
Is situation par...Kishore kumar ji ka gaya ek geet yaad aa raha hai...
'teri duniya se ho ke majboor chala..main bahut duur bahut duur bahut duur chala....
तुमसे मिला अच्छा लगा...
एक मुलाकात और जुड़ गयी...
यादों की...
सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति
regards
चमड़े की ज़बान का क्या है, कुछ भी कह देती है.................
सुन्दर व्याखा
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
ये इश्क नहीं आसाँ...
बस इतना जान लीजे
सुन्दर रचना
गजब उकेरे हैं मनोभाव!! बिल्कुल जिन्दा!! बधाई.
बहुत बढ़िया सुन्दर रचना !
उफ़्फ़्फ़!!
एक बेहतरीन कविता...
स्मृतियों को इतने खूनसूरत ढ़ंग से चित्रित करते इससे पहले न देखा न सुना
अहा!
रास्ते में वो मिला अच्चा लगा,
सुना -सुना रास्ता अच्छा लगा,
बहुत अच्छे मित्र....
ताला होने की वजह से आप ये गीत गाने से मरहूम रह गये कि
मैं ये सोच कर उसके दर से उठा था , कि वो रोक लेगी मना लेगी मुझको...
वाह वाह
क्या भाव हैं
क्या अंदाज है
बधाई
वाह वाह
क्या भाव हैं
क्या अंदाज है
बधाई
वाह वाह
क्या भाव हैं
क्या अंदाज है
बधाई
मीत जी,
बहुत ही सुन्दर भावचित्रण, गज़ब का संप्रेषण कविता कहीं भी विचलित नही करती बल्कि हमदर्दी बढाती है।
बहुत अच्छा लिखा है, बधाईयाँ।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
Manobhavon ko sundar dhang se chitrit kiya hai aapne.
just love ..pure love ,nothing else.. bhai main to aapki lekhni ka deewana ho gaya .. mera salaam kabul kariye ....agli baar delhi me paarty aapki taraf se....badhai
vijay
pls read my new poem "झील" on my poem blog " http://poemsofvijay.blogspot.com