कभी तुमने!
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
सीने में दर्द छिपाए,
जब भूख से पेट कुलबुलाये,
निहार शून्य, होंठो को भीच,
एक लम्हा भी जिया है....
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
अनजान मंजिलों की,
बेदर्द महफिलों में,
लिबास के पैबंद को
कभी हाथों से ढका है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
राहों में दौलतों की,
क्या तुम कभी चले हो,
सोने के खंजरों को,
कभी जिस्म पे सहा है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
कोई खाए कहीं झूठन,
कोई पहने कहीं उतरन,
खरीदने को खुशियाँ,
यहाँ जिस्म भी बिका है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
कहीं छत नहीं है सर पे,
कहीं तन उघड़ रहा है,
क्या देख कर इस सब को,
तुम्हारा दिल जला है...
कभी तुमने!
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
________________________________
बस यूँ ही ख्याल दिल को दर्द देते रहते हैं...
और दर्द शब्दों में बह जाता है...
फ़िर दर्द हुआ और बह गया...
बस आपकी नज़र कर दिया ...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
सीने में दर्द छिपाए,
जब भूख से पेट कुलबुलाये,
निहार शून्य, होंठो को भीच,
एक लम्हा भी जिया है....
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
अनजान मंजिलों की,
बेदर्द महफिलों में,
लिबास के पैबंद को
कभी हाथों से ढका है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
राहों में दौलतों की,
क्या तुम कभी चले हो,
सोने के खंजरों को,
कभी जिस्म पे सहा है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
कोई खाए कहीं झूठन,
कोई पहने कहीं उतरन,
खरीदने को खुशियाँ,
यहाँ जिस्म भी बिका है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
कहीं छत नहीं है सर पे,
कहीं तन उघड़ रहा है,
क्या देख कर इस सब को,
तुम्हारा दिल जला है...
कभी तुमने!
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
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बस यूँ ही ख्याल दिल को दर्द देते रहते हैं...
और दर्द शब्दों में बह जाता है...
फ़िर दर्द हुआ और बह गया...
बस आपकी नज़र कर दिया ...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
सच दिल को छू गई रचना।
कोई खाए कहीं झूठन,
कोई पहने कहीं उतरन,
खरीदने को खुशियाँ,
यहाँ जिस्म भी बिका है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
क्या कहूँ। अदभूत हैं। सप्रू हाऊस के पीछे और मार्डन स्कूल के बगल में एक कूडा घर है शायद आज भी हैं। वहाँ कुछ बच्चे और औरतें खाना ढूढ़ कर खाया करते थे। यह देख कर दिल रो पड़्ता था। बिल्कुल यही हालत बंगाली मार्किट में एक फ्रूट की दुकान है वहाँ जो फ्रूट खराब निकल जाता है उसे वे बहार रखे एक छोटे से कूडेदान के पास फैंक देते है और गरीब घर के बच्चे उन्हें ले जाते हैं। और कभी कभी तो उनकी लडाई दुकानदार से भी हो जाती हैं। एक दो लडाई देखी भी थी। एक सात आठ साल का लड़का अपने दो छोटे साथीयों के साथ खड़ा देख रहा था कि कब दुकानवाला फैके और कब वो ले। दुकान दार फैंकने से पहले ही उन्हें भगाने लगा और गाली देने लगा। फिर क्या था वो लड़का भिड़ पड़ा उस दुकान के नौकर से। उसका आत्मविशवास देखकर मैं दंग़ रह गया था। खैर गरीबी .........।
बहुत बढ़िया लिखा है।
गरीबी को देखा भी है....और महसूस भी किया है.....मगर इन दोनों बातों और ख़ुद के भोगने में बहुत अन्तर है....इसलिए गरीबी जीना....और महसूस करने में हमेशा एक गहरी खायी बनी ही रहेगी....लाख मर्मान्तक कविता लिख मारें हम....किंतु गरीबी को वस्तुतः कतई महसूस नहीं कर सकते हम...बेशक समंदर की अथाह गहराईयाँ नाप लें हम....!!!
आप का अनुभव या फिर ये दर्द आपके डाले गए गीत जैसा ही है.......मर्मान्तक
कोई खाए कहीं झूठन,
कोई पहने कहीं उतरन,
खरीदने को खुशियाँ,
यहाँ जिस्म भी बिका है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
जो भुगतते है, वो बेचारे कहां इतना सोचते होगे... बहुत ही भावुक कर दिया आप ने.
धन्यवाद
कोई खाए कहीं झूठन,
कोई पहने कहीं उतरन,
खरीदने को खुशियाँ,
यहाँ जिस्म भी बिका है...
" दिल को भावुक और आत्मा को झंझोड़ के रख दिया इन शब्दों ने.."
Regards
बहुत मार्मिक यथार्थ के करीब
भावात्मक कविता, छू गयी, पढ़ते पढ़ते दिल मैं इक टीस उठी
जीवन ऐसा भी होता है
ji haa.. garibi ko dekha hai aur mahesoos bhi kiya hai.. aur aaj tak uska ahesaas dil-o-dimaag mai jidna rakha hai...
bahetareen post meetji.... gareebi ki sacchai likhi hai...
kalpnik jagat me udan bharti rachnaon ke bich yatharth ka chitran karti aapki kavita taaja hawa ke jhonke ke saman hai.
बहुत सुंदर भाव
नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
bahut achchi rachna hai. dil tak jane wali
First of All Wish U Very Happy New Year....
कोई खाए कहीं झूठन,
कोई पहने कहीं उतरन,
खरीदने को खुशियाँ,
यहाँ जिस्म भी बिका है...
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
BAhut gahare bhav hai....
Sundar rachana...
Badhai,,,
"नव वर्ष २००९ - आप के परिवार मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "
regards
बहुत बढ़िया रचना..........
2पंक्तिया मेरी तरफ़ से
कोई तरसे दो वक्त की रोटी को ,
छोटी छोटी खुशियो को ,
जिनके पास है ,उनको नही कद्र इसकी
क्या कभी तुमने!
गरीबी को देखा है, उसे महसूस किया है...
कहीं छत नहीं है सर पे,
कहीं तन उघड़ रहा है,
क्या देख कर इस सब को,
तुम्हारा दिल जला है...
कभी तुमने!
गरीबी को देखा है,उसे महसूस किया है...
बढ़िया कविता है। जाके पांव फटे ना पड़े बिवाई वो क्या जाने पीर पराई। वास्तव में अभाव को आंकना और महसूस करना दो अलग अलग पहलू हैं और किसी सापेक्ष स्थिति का आंकलन निरपेक्ष भाव से करना बेहद मुश्किल। अच्छी रचना।