पूरे देश की निगाहें थी मुंबई में हो रही आतंकी घटना पर... कितने ही मारे जा चुके थे, कितने ही अस्पताल में मौत से लड़ रहे थे...कितने ही उन दहशतगर्दों से लोहा लेते हुए मौत के मुह में जा चुके थे... और कितने ही लड़ रहे थे... २९ नवम्बर २००८... सुबह ४ बजे ज़ंग लगभग अपनी चरम सीमा पर थी पिछले २ दिन से मैं लगातार टीवी से चिपका रहा था, और देश के जाबाजों को घात लगाये बैठे देख रहा था... कभी कभी छिटपुट गोलीबारी होती तो लगता अब शायद जीत मिलेगी...पर नहीं...
टीवी देखकर थक गया था, मोर्निंग वाल्क का टाइम भी हो चला था सो निकल पड़ा... मेरे घर से रोड क्रॉस करते ही, चांदनी चौक थाना है... जो की जनता के लिए नया बना है... मैं रोड क्रॉस कर उसके सामने पहुँचा ही था... की एक लगभग ५ फीट का हवालदार, मोटा पेट, बाल आधे सफ़ेद, आधे काले...
कुल मिलाकर बहुत ही भोंडा सा लग रहा था वो, मुहं में पान था और शरीर पर पेट के आलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था, ऐसे लगता था बस अभी फट पड़ेगा... ठण्ड भी कुछ ज्यादा ही थी... वो पुलिस वाला उसके रिक्शे से उतरा और सीधा थाने में जाने लगा...
उसे बिना पैसे दिए जाते देख रिक्शा वाला, जो की एक ६ फीट का हट्टा-कट्टा जवान था, शारीरिक बनावट से कोई फौजी की तरह लग रहा था... उससे बोला साब किराया तो देते जाइये...
पुलिसवाला थाने के गेट पर खड़े अपने दूसरे साथी से बोला की अबे इसे कुछ समझा ये हमसे पैसे मांगेगा... ये शब्द सुनते ही मेरा जैसे खून सा खोल गया... उस रिक्शे वाले को इतनी ठण्ड में भी माथे से पसीने की बुँदे पोंछते देख इस बात का अंदाजा हो रहा था की वो मोटा उसे काफी दूर से लेकर आया होगा... मैंने उस पुलिसवाले को आवाज देते हुए कहा माफ़ कीजियेगा! जब आप उसके रिक्शे में बैठ कर आए हैं तो फ़िर उसका किराया दिए बिना क्यों जा रहे हैं... वो पुलिसवाला बोला तुझे ज्यादा दर्द हो रहा है तो तू ही देदे इसका किराया...
मैं उसकी यह बात सुनकर उस पुलिसवाले से उलझना चाहता था, पर उस रिक्शे वाले ने मुझे रोका, और छोडिये ना साहब! खाने दीजिये इसे हराम की कह कर अपना रिक्शा लेकर हलके-हलके कोहरे में कहीं खो गया... वो दोनों पुलिसवाले जोर से हँसे और फ़िर अंदर चले गए... मैं लगभग ५ मिनट वहां रुका और मूड ख़राब हो जाने की वजह से वापस घर की की तरफ़ चल दिया...
घर पहुँचा तो पता चला की मुंबई की ज़ंग जीती जा चुकी थी... सारे आतंकवादी मारे जा चुके थे...मैंने शीशे में अपना चेहरा देखा, मेरे चेहरे पर संतोष नहीं था... मन में सोचा की उस संतोष को पाने के लिए हमें अभी बहुत सी ज़ंग जीतनी हैं...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
टीवी देखकर थक गया था, मोर्निंग वाल्क का टाइम भी हो चला था सो निकल पड़ा... मेरे घर से रोड क्रॉस करते ही, चांदनी चौक थाना है... जो की जनता के लिए नया बना है... मैं रोड क्रॉस कर उसके सामने पहुँचा ही था... की एक लगभग ५ फीट का हवालदार, मोटा पेट, बाल आधे सफ़ेद, आधे काले...
कुल मिलाकर बहुत ही भोंडा सा लग रहा था वो, मुहं में पान था और शरीर पर पेट के आलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था, ऐसे लगता था बस अभी फट पड़ेगा... ठण्ड भी कुछ ज्यादा ही थी... वो पुलिस वाला उसके रिक्शे से उतरा और सीधा थाने में जाने लगा...
उसे बिना पैसे दिए जाते देख रिक्शा वाला, जो की एक ६ फीट का हट्टा-कट्टा जवान था, शारीरिक बनावट से कोई फौजी की तरह लग रहा था... उससे बोला साब किराया तो देते जाइये...
पुलिसवाला थाने के गेट पर खड़े अपने दूसरे साथी से बोला की अबे इसे कुछ समझा ये हमसे पैसे मांगेगा... ये शब्द सुनते ही मेरा जैसे खून सा खोल गया... उस रिक्शे वाले को इतनी ठण्ड में भी माथे से पसीने की बुँदे पोंछते देख इस बात का अंदाजा हो रहा था की वो मोटा उसे काफी दूर से लेकर आया होगा... मैंने उस पुलिसवाले को आवाज देते हुए कहा माफ़ कीजियेगा! जब आप उसके रिक्शे में बैठ कर आए हैं तो फ़िर उसका किराया दिए बिना क्यों जा रहे हैं... वो पुलिसवाला बोला तुझे ज्यादा दर्द हो रहा है तो तू ही देदे इसका किराया...
मैं उसकी यह बात सुनकर उस पुलिसवाले से उलझना चाहता था, पर उस रिक्शे वाले ने मुझे रोका, और छोडिये ना साहब! खाने दीजिये इसे हराम की कह कर अपना रिक्शा लेकर हलके-हलके कोहरे में कहीं खो गया... वो दोनों पुलिसवाले जोर से हँसे और फ़िर अंदर चले गए... मैं लगभग ५ मिनट वहां रुका और मूड ख़राब हो जाने की वजह से वापस घर की की तरफ़ चल दिया...
घर पहुँचा तो पता चला की मुंबई की ज़ंग जीती जा चुकी थी... सारे आतंकवादी मारे जा चुके थे...मैंने शीशे में अपना चेहरा देखा, मेरे चेहरे पर संतोष नहीं था... मन में सोचा की उस संतोष को पाने के लिए हमें अभी बहुत सी ज़ंग जीतनी हैं...
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पुलिसवाला थाने के गेट पर खड़े अपने दूसरे साथी से बोला की अबे इसे कुछ समझा ये हमसे पैसे मांगेगा...
" hadd ho gyi kamenepan ki, sach khaa na jane khan khan kya kya jang jitni hai.."
Regards
सबसे पहले एक बात कह दूँ शायद फिर भूल जाऊँ। कि आप भी आँठ्वे अजूबे हो मेरी तरह। जब मैं ऐसी बाते करता हूँ तो मुझे मेरे दोस्त यही कहते है। खैर जब तक ऊपर के लोग नही बदलेगे ये भी नही बदलेगे। इन पुलिस वालों की बहादुरी छोटे लोगो पर ही चलती है। पर लाल बती लगी गाड़ी में अदंर बैठे साहब के कुते को भी ये सलाम करते है।
aapne bahut achchi baar kahi hai ...susheel ji baat se bhi mai sahmat hun
सही कहा आपने . एक लड़ाई यह जीती है.
देश के अन्दर बैठे अपने ही बीच के ऐसे लोगों से भी लड़ाई जीतनी है .
सव कहा है आपने। अभी तो बहुत कुछ करना है। बढे चलो। जय भारत।
सच कहा दोस्त अभी हमें बहुत सी जंग लड़नी बाकी है .जब तक हम बेहतर इंसान नही बनेगे .अच्छा भारतीय नही बन सकते.....
जंग जारी है, हम भी आपके साथ है
अन्तिम विजय अपनी ही होगी,
जय माता दी
सच कहा अभी बहुत सी जंग जीतना बाकी है बस लोगो में सवेंदनाये बची रहे जो लोंगो मैं पैदा नहीं की जा सकती
अरे भाई यह जंग मै अकेला लडता हूं, मेरी मां मुझे कहती है तु पागल है, जब सब सहते हे तो तुझे क्या तकलीफ़ है, लेकिन मै हमेशा ऎसी बातो से चिढ कर लड पडता हू ओर अगर कभी मेरे आसपस भीड खडी हो तो मजा आ जाता है सब बिना बुलाये ही मेरा साथ देते है, आज जान पडा कि भारत मै अब पागल ओर भी है,
आओ हम सब क्यो ना ऎसे पागल बन जाये, ताकि इन सयानाओ को कान हो जाये.
बिलकुल सही। और सबसे बडी जंग तो जिंदगी ही है, जिसे ताउम्र देखना है, ताउम्र लडना है।
मीत जी /एक ब्लॉग पर कमेन्ट देखा आपका हायकू का कमेन्ट हायकू में /जंग जीतने वाला आर्टिकल अच्छा लगा
Yeh bhi ek prakaar ka aatankvaad hi to hai, 'licenci' aatankvaad.
sahi kaha aapne. me to aksar yahi sochati rahati hu ki log aese kaise ho sakte hai. kya unme thoda bhi dard nahi hota hai dusaro ke liye. me jab bhi aesa kuch dekhati hu to bhut becheni mahasus karti hu. or sabse badi baat hamare samne galat hota hai or hum kuch kar bhi nahi paate.
सही कहा आपने...जंग तो अभी बहुत से मोर्चों पर जीतनी है। सवाल सबसे बड़ा यह है कि इस खतरनाक वक्त में हमें अपनी सुरक्षा के लिए जिन लोगों से उम्मीद रखनी चाहिए...उन पर भरोसा किया कैसे जाए। कब बदलेंगे ये... अगर अब भी नहीं बदले।
Mere blog ko apne blog list par dalne ke liye dhanyawaad.