टूट कर ये हर पल,
मेरी जान लेते रहे...
हमको भी प्यार था इनसे,
ढेरों सपने हम भी संजोते रहे...
कभी सोते, कभी जागते,
कभी ज़िन्दगी के संग भागते,
ख्वाब के मोती नींद में पिरोते रहे...
पर टूट कर ये हर पल,
मेरी जान लेते रहे...
रात की अंगनाई में हम,
इन्हें पूरा करने को तरसते रहे...
हर सुबह की अंगड़ाई में,
ये शीशे से चटकते रहे...
सोचा ख्वाब देखना छोड़ दें?
पर फिर ये ख्याल बनकर,
दिल-ओ-दिमाग में उमड़ते रहे...
कुछ आते...
मीठी नींद में ले जाते...
और कुछ नींद को परे ले जाते...
ठाना ही था की अब ना देखूंगा
कोई ख्वाब!
पर फिर ख्वाब, ख्याल बन कर आया...
भीड़ में भी जो तन्हा होने नहीं देते...
सपने तो वही हैं, जो रातों को सोने नहीं देते...
आखिर हमने फिर ऑंखें मूंदी...
और फिर सपने देखने को लेटे रहे...
© 2008-09 सर्वाधिकार सुरक्षित!
मेरी जान लेते रहे...
हमको भी प्यार था इनसे,
ढेरों सपने हम भी संजोते रहे...
कभी सोते, कभी जागते,
कभी ज़िन्दगी के संग भागते,
ख्वाब के मोती नींद में पिरोते रहे...
पर टूट कर ये हर पल,
मेरी जान लेते रहे...
रात की अंगनाई में हम,
इन्हें पूरा करने को तरसते रहे...
हर सुबह की अंगड़ाई में,
ये शीशे से चटकते रहे...
सोचा ख्वाब देखना छोड़ दें?
पर फिर ये ख्याल बनकर,
दिल-ओ-दिमाग में उमड़ते रहे...
कुछ आते...
मीठी नींद में ले जाते...
और कुछ नींद को परे ले जाते...
ठाना ही था की अब ना देखूंगा
कोई ख्वाब!
पर फिर ख्वाब, ख्याल बन कर आया...
भीड़ में भी जो तन्हा होने नहीं देते...
सपने तो वही हैं, जो रातों को सोने नहीं देते...
आखिर हमने फिर ऑंखें मूंदी...
और फिर सपने देखने को लेटे रहे...
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