अब न मिलेगी कागजों में कॉमिक्स
हितेश कुमार
बिल्लू, पिंकी, रमन हों या फिर सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज और या फिर कंप्यूटर से तेज दिमाग रखनेवाले चाचा चौधरी कहने को तो ये सभी नाम कॉमिक्स किरदारों के हैं. वो किरदार जिनके बारे में सोच भर लेने से आप कल्पनाओं की उस दुनिया में चले जाते हैं जिसमें रहस्य है, रोमांच है, और गुदगुदाने-फुसफुसाने के साथ जिज्ञासाओं का वो समुंदर है जिसमें डूबने से शायद ही कोई अछूता रह पाया हो. बीते 18 वर्षों की बात करें तो टेलिवीजन और इंटरनेट की दुनिया में दिन-ब-दिन हो रहे नये प्रयोगों के चलते कॉमिक्सों का अस्तित्व कहीं खोता जा रहा है. जहां पहले बच्चे ताउ जी के चमत्कारी डंडे और परमाणु की असीम शक्तियों के दीवाने थे, वहीं आज उनकी पहली पसंद डोरेमॉन और कितरेस्तू के गैजेट्स बन चुके हैं. नागराज, भोकाल, धू्रव, तौसी, हवलदार बहादुर, अंगारा और बांकेलाल जैसे न जाने कितने ही कॉमिक्स के हीरो जीवन का एक हिस्सा बने हुए थे. लेकिन आज वो जगह पॉवर रेंजर्स और हीरो ने ले ली है.
32 वर्षीय आकाश कहते हैं- जैसे मेरा बचपन पीछे छूट गया है उसी तरह कॉमिक्स भी मुझसे बहुत पीछे छूट गयीं हैं, लेकिन कॉमिक्स की यादों को मैं अपने से कभी दूर नहीं कर सकता. कॉमिक्सों का एक-एक किरदार मेरे जहन में आज भी बिल्कुल ताजा है. जन्मदिन पर सारे उपहार एक तरफ और पापा का दिया हुआ डायमंड कॉमिक्स का डाइजेस्ट एक तरफ होता था. लेकिन अब ऐसा नहीं है. आजकल बच्चों से अगर हम कॉमिक्सों के लिए कोई क्रेज देखने को नहीं मिलता. हां कार्टून नेटवर्क, पोगो और हंगामा के कैरेक्टर्स को वा बखूबी जानते और पहचानते हैं.
सागर ही नहीं दरअसल कॉमिक्सों के खोते अस्तित्व की चिंता हर उस दीवाने को है, जो कॉमिक्स को देखते ही या उसके बारे में सोचते ही फिर से अपने बचपन में लौट जाता है. आज कॉमिक्स इंडस्ट्री से जुड़ा हर शख्स यह जान चुका है कि कॉमिक्सों का वही पुराना दौर फिर से लौटा कर ले आना मुमकिन नहीं है. अगर चुनौति है तो पन्नों से गुम होती जा रही कामिक्सों जिंदा रखने की.
वो भी एक दौर था
बॉलीवुड भी कॉमिक्स के हीरो से अछूता नहीं है. अजय देवगन, अक्षय कुमार यहां तक की निर्देशक अनुराग कश्यप को भी कॉमिक्स से बेहद प्रेम रहा है. अनुराग कहते हैं कि कॉमिक्स के जरिये ही वो अपनी सोच के दायरे को इतना फैला पाये. काल्पनिक कहानियों और रंगीन चित्रों से सजी कॉमिक्स जब उनके हाथ में आती थी तो उनका मन भी कॉमिक्स के किरदारों के साथ होता. गजब के दिन थे वो जब गर्मियों की छुट्टियां भी कॉमिक्सों के नाम होती थीं. यह वही दौर था जब संयुक्त परिवार एकल परिवार में बदल रहे थे. दादा-दादी और नाना-नानी की कहानियां खत्म हो चलीं थीं. इस दौरान कमरे की अल्मारी से लेकर स्कूल के बस्ते तक कॉमिक्सों ने अपनी बेहिसाब जगह बना ली थी. और तो और स्कूल की लाइब्रेरी तक में कॉमिक्स अपन जादू बिखेर रही थी.
बात है 1967 की, टेलीविजन ने भारत में कदम रखे ही होंगे, अनंत पई एक शाम दूरदशर््ान पर एक ग्रीक माइथोलॉजी क्विज शो देख रहे थे. शो में एक बच्चा भगवान राम की माता का नाम न बता सका. ग्रीक माइथोलॉजी से जुड़े सवालों के जवाब तो बच्चे दे रहे थे लेकिन राम की माता का नाम पता नहीं था. यह देख पई को बहुत हैरानी हुई. और उसी साल अनंत ने टाइम्स आफ इंडिया की जॉब छोड़ दी और भारतीय पौराणकि कथाओं पर कॉमिक्स प्रस्तुत करने का प्लान किया. कई पब्लिकेशंस ने उनका आइडिया रिजेक्ट कर दिया. अंत में बात बनी इंडिया बुक हाउस के इिनिशियेटिव से.
शुरु आत में स्ट्रगल के बाद अमर चित्र कथा बीस भारतीय भाषाओं में इंडिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली कॉमिक्स बन गई. ज्ञान और मनोरंजन का यह अनूठा संगम जबर्दस्त हिट रहा और 70 से 80 के दशक में अमर चित्र कथा की रिकार्ड तोड़ बिक्री हुयी. एक अनुमान के अनुसार उस समय लगभग 10 करोड़ से भी अधिक कॉमिक्स बिकीं. बच्चों को पौराणिक व एतिहासिक कथाओं और महापुरुषों से पहचान करवाने का जिम्मा अब दादा-दादी या नाना-नानी की जगह अमर चित्र कथा ने ले लिया था. खेल खेल में बच्चों का ज्ञान बढ़ाने का क्रेडिट निश्चित तौर पर अमर चित्र कथा को ही दिया जाना चाहिए.
जब विडियो गेम बना संकट
90 के दशक में कॉमिक्सों पर संकट मंडराने लगा. दरअसल इसी समय कागज की कीमत में तेजी से बढ़ोतरी हुयी. नतीजतन कॉमिक्स के दाम भी बेतहाशा बढ़ गये और कुछ निचले तबके लोगों को इससे महरूम होना पढ़ा. दरअसल यही वो दौर था जब बच्चों के सुपरहीरो उनके सपनों की दुनिया से निकल कर टेलिवीजन स्क्रीन पर साकार हो गये. और उन्हें साकार करने का काम किया विडियो गेम ने. विडियो गेम ने न सिर्फ कॉमिक्स से अधिक लोकप्रियता बनायी, बल्कि बच्चों के अंदर एक तीव्र इच्छा पैदा कर दी गेम के किरदार को खेलने की.
विडियो गेम के द्वारा बच्चों की सपनों की दुनिया का यह हीरो उनकी सोच के मुताबिक विलेन का खात्मा करता था. क्योंकि यह बच्चों की कंट्रोल से चलता था. यानि जब वो चाहें उछलता, जब वो चाहें वार करता. जाहिर है इस जीते जागते हीरो के सामने कामिक्स किरदारों का चित्र संवाद पीछे छूटने लगा. कॉमिक्स से कहीं ज्यादा मजा अब इस खेल में आने लगा. इसी बीच इंटरनेट की आयी क्रांति ने भी कॉमिक्स की बिखरती बिसात पर एक दांव मारा. यानि अब कॉमिक्स आॅनलाइन पढ़ी जा सकती थी. न फटने का डर न खोने का डर सालों साल सहेज कर रखी जा सकने वाली कॉमिक्स का रूप बदला इंटरनेट ने.
और देखते ही देखते टीवी पर भी कार्टूनों की बाढ़ आ गयी. धीरे-धीरे विडियो गेम पार्लर और कार्टूनस ने कॉमिक्स के जादू को खत्म करने में अहम भूमिका अदा की. इन तमाम बदलावों ने कॉमिक्स के बाजार को इस कदर प्रभावित किया की प्रकाशन बंद होने लगे. बच्चों के प्यार कॉमिक्स कैरेक्टर्स का अस्तित्व अब किसी-किसी अखबार के छिट-पिट कॉलम तथा विविध भारती पर प्रसारित होने वाले में कार्यक्रमों में सिमट कर रह गया. दरअसल विडियो गेम और इंटरनेट के आ जाने से मनोरंजन के रूप में कई साधन मौजूद थे. इसलिए कॉमिक्स का साथ धीरे-धीरे पीछे छूटता गया. कॉमिक्स इंडस्ट्री पर संकट के बादलों के बीच यह भविष्यवाणी भी हो गयी की कॉमिक्स के युग का अंत नजदीक है. यह कहना मुश्किल है कि कॉमिक्स युग का अंत हुआ, लेकिन इस बात को झुठला पाना भी नामुमकिन है.
कॉमिक्स को जीवन दान
इंटरनेट पर हिंदी की जबर्दस्त पैठ, लोगों के बीच नेटवर्कि ंग साइट्स की लंबी फेहरिस्त और साथ ही नोटबुक, मोबाइल आदि ने निश्चिततौर पर कॉमिक्स को जीवन दान दिया है. लोग अपने पसंदीदा कॉमिक्स इंटरनेट से डाउनलोड कर अपने खोये बचपन की यादें फिर से ताजा कर रहे हैं. गौरतलब है कि नंबर वन नेटवर्कि ंग साइट फेसबुक पर कॉमिक्सों से जुड़े बहुत से पेज मौजूद हैं. जाहिर है इंटरनेट क्रांति ने कॉमिक्सों के लिए वरदान का काम किया है. इंटरनेट न होता तो कॉमिक्स इंडस्ट्री गहन अंधकार में होती.
सुर्खियां हैं कि जल्द ही एंड्रायड फोन ऐप्लिकेशन के जरिये मोबाइल पर अमर चित्र कथा लोगों के बीच पहुंचने लगी है. कॉमिक्स के किरदार कॉमिक्स से निकल मोबाइल गेम्स में जीवंत होने लगे हैं. मोबाइल पर भी कॉमिक्स अब मौजूद है और इसे नाम दिया गया है ‘मॉमिक्स’. कुल मिलाकर कह सकते हैं कि अब कॉमिक्स इंडस्ट्री पन्नों से निकलकर इंटरनेट पर छा रही है. अब प्रिंट के साथ-साथ कॉमिक्सों की वेबसाइट्स भी लांच होने लगी हैं. वेबसाइट्स के द्वारा सब्सक्रिप्शन, आगामी कॉमिक्स के आगमन सरीखी सूचना आसानी से उपलब्ध होने लगी है. साथ ही साथ कॉमिक्सों के फेसबुक पेज भी बन रहे हैं. इतना ही नहीं अब लोगों को लगता है कि कॉमिक्स किसी फिल्म के प्रचार का बेहतरीन जरिया भी बन सकता है. गौरतलब है कि यशराज ने हाल ही में आयी अपनी फिल्म एक था टाइगर को कॉमिक्स की शक्ल में फैंस के बीच पहुंचा दिया है. यश बैनर ने इसे नाम दिया है ‘यॉमिक्स’ और इस यॉमिक्स सिरीज में धूम और हमतुम जैसी फिल्मों की कॉमिक्स वो जल्द ही प्रस्तुत करने वाले हैं. उल्लेखनीय है की सुपरस्टार शाहरुख खान ने भी अपनी फिल्म रा.वन को कॉमिक्स के रूप में अपने फेंस के बीच प्रस्तुत किया था. खेल जगत से आइपीएल टीम दिल्ली डेयरडेविल टीम की भी एक कॉमिक्स सीरिज आयी थी. कुलमिलाकर देखा जाये तो तमाम पॉपुलर सिंबल्स से कॉमिक्स को जोड़ दिया गया है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या कॉमिक्स इन सबसे जुड़ने के बाद फिर से वही लोकप्रियता बना पायेगी, जो सालों पहले हुआ करती थी.
इकनॉमिक्स आफ कॉमिक्स
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बाजार में उसी उत्पाद की मांग रहती है, जिसके पीछे बेहतरीन प्रचार-प्रसार और लोगों के बीच उसे सरल ढंग से पेश करने की होती है. जी हां वह है मार्केटिंग रणनीति कॉमिक्स भी एक उत्पाद ही तो है और उसे भी प्रचार पसार की सख्त आवश्यकता है.
ग्रीन गोल्ड एनिमेशन प्राइवेट लिमिटेड के छोटा भीम नामक कार्टून कैरेक्टर ने बहुत कम समय में धूम मचा दी है. यह बच्चों के साथ-साथ बड़ों के बीच भी बेहद लोकप्रिय है. और तो और इस किरदार की कॉमिक्स की कॉमिक्स के प्रति भी बच्चों द्वारा भरपूर रेस्पांस देखने को मिल रहा है. इस कंपनी के बिजनेस मैनेजर सोमनाथ मजूमदार बताते हैं कुछ लोग कॉमिक्स के प्रति इमोशनल नॉस्टेल्जिया लिये हुए जी रहे हैं. एसा शायद इसलिए हो कि वे कॉमिक्स पढ़कर अपने बचपन की यादों में लौट जाते हों. उन्हें नहीं भूलना चाहिए की बीता पल लौट कर नहीं आता. बदलाव को स्वीकार करने में ही समझदारी है. इसलिए कॉमिक्स को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए रिसर्च करनी होगी, पाठकों के दिमाग को पढ़ना होगा. बेहतर मार्केटिंग रणनीति बनानी होगी. इनकी मुताबिक उल्टी रणनीति अपनाने से भी कॉमिक्स को फायदा है. यानि जो इलैक्ट्रानिक कामिक्स हैं उन्हें प्रिंट करा कर प्रस्तुत किया जाये तो एसा करना बेहतर होगा.
जाने माने कार्टूनिस्ट या कहें की ढब्बु जी और बहादुर के पिता आबिद सुरती का कहना है कि कॉमिक्स इंडस्ट्री का संकट में होने का केवल एक ही कारण है और वो है यहां की कमजोर इकनॉमिक्स. जब यहां कोई इनवेस्ट ही नहीं करना चाहता है. सबको यहां केवल रिस्क ही दिखता है, फायदा नहीं. एक बात और कि कॉमिक्स इंडस्ट्री का कोई एसोसिएशन का ना होना भी समस्याओं का एक कारण है. किसी भी समाधान का हल तभी निकल पाता है जब एसोसिएशन के समक्ष बात का रख पायें.
डिजिटल कॉमिक्स का भविष्य
कॉमिक्स की बिक्री तेजी से कम हो रही है, लेकिन हैरी पॉटर की बुक खरीदने के लिए लोग दीवाने हैं. वजह है हैरी के जादू का रहस्य और रोमांच. खास बात यह भी है कि इन किताबों का कंटेंट भी बेहद सशक्त होता है. फिर वो चाहे हल्क हो, स्पाइडर मैन या बैटमैन हो. जब किसी चीज को परोसने का तरीका ही इतना प्रभावशाली होगा तो लोग मोल भाव नहीं करते. यह उसी तरह होता है जैसा की लोग रेहड़ी पर न जाकर समौसा रेस्तरां में बैठ कर खाना ज्यादा पसंद करते हैं. इस बात का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि स्पाइडर मैन और बैटमेन पर आज भी फिल्में बन रही हैं लेकिन हिट कराने का तरीका एक ही है. नयापन! जी हां नयी टेक्नॉलजी, नयी कहानी, नये इफेक्ट्स यही सारी चीजें हैं जो दर्शकों को थियेटर तक खींच लाती हैं.
अब कंटेट तो अपनी ही जगह है लेकिन चुनौति के रूप में है डिजिटल माध्यम. सवाल है कि क्या डिजिटल माध्यम लोगों को उतना ही पसंद आयेगा जितना की प्रिंट कॉमिक्स. इसके साथ ही एक और बड़ी चुनौति है कंटेंट के साथ साथ ग्राफिक्स में बड़े बदलावों की. जब पाठक किसी कहानी को पढ़ता है तो अपने मस्त्षिक में उसे इमैजिन भी करता है और ग्राफिक्स उसके मस्त्षिक को वहां ले जाने में सहायक होते जहां उसे होना चाहिए. आज हमारे पास विकल्प मौजूद हैं जरूरत है तो बस उसे इस्तेमाल करने की.
गौरतलब है कि कॉमिक्सों का कंटेट आज भी वही है, यानि समय से पीछे का. हम इसे समय के साथ भी नहीं रख सकते. इस जरूरत है आगे ले जाने की. ‘चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है’ इस पंच लाइन ने इसलिए ही प्रसिद्धि पायी, क्योंकि यह वक्त से आगे थी. कंप्यूटर उस समय भविष्य की ही बात थी. इस पंचलाइन को पढ़ लोग कंप्यूटर की तेजी का अंदाजा लगाते थे. जाहिर है आज के दौर में इस पंचलाइन का कोई मतलब नहीं है. तो सोचना होगा की वक्त से आगे क्या हो सकता है.
हाल ही में अमर चित्र कथा ने रस्किन बांड की द ब्लू अंबरेला को कॉमिक्स के रूप में प्रकाशित किया है. चाचा चौधरी और साबू के कारनामे जल्द ही अमेरिका में डिजिटल रूप में प्रस्तुत होंगे. अब डिजिटल में साबु और चाचा चौधरी क्या गुल खिलायेंगे यह देखने वाली बात होगी.
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